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पाठ १६ : स्त्री प्रत्यय (१)
शब्दसंग्रह खट्वा (खाट) । अजा (बकरी) । एडका (भेड)। अश्वा (घोडी) । कोकिला (कोयल)। चटका (चिडिया)। मूषिका (चूहिया)। बाला (लड़की)। वत्सा (बछडी)। सुपर्वा (देवता)। महिषी (रानी, भैंस)। मही (पृथ्वी)। रजनी (रात)। शुनी (कुतिया)। कौमुदी (चांदनी)। विदुषी (विद्वान् स्त्री)। प्राची (पूर्वदिशा)। प्रतीची (पश्चिमदिशा) । उदीची (उत्तरदिशा) । कुमारी (अविवाहित बालिका)।
धातु-शुच- शोके (शोचति) शोक करना। कुच-उच्चः शब्दे (कोचति) ऊंचे स्वर से शब्द करना। लुट ---विलोटने (लोटति) लोटना । चुप-मंदगती (चोपति) धीरे-धीरे चलना । उषु, प्लुषु-दाहे (ओषति; प्लोषति) जलना। पुष-पुष्टी (पोषति) पुष्ट करना। बुध--बोधने (बोधति) जानना । लुञ्च-अपनयने (लुञ्चति) दूर करना । बुक्क-भषणे (बुक्कति) भूकना।
लक्ष्मी, स्त्री और श्री शब्द के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट १ संख्या ६०,५८,५९)
__ शुच धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २, संख्या १७) कुच से पुष धातु तक के रूप शुच की तरह चलते हैं, उषु के रूप कुछ भिन्न चलते हैं (देखें परिशिष्ट २ संख्या ५४) । बुक्क के रूप लुञ्च की तरह ही चलते हैं । लुञ्च के रूप देखें (परिशिष्ट २ संख्या ५५) ।
स्त्रीप्रत्यय पुल्लिग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिए जो प्रत्यय लगाए जाते हैं उन्हें स्त्रीप्रत्यय कहते हैं। वे चार हैं-आप्, ई, ऊङ् और ति । इनमें पिछले दो प्रत्यय बहुत ही कम काम में आते हैं । आप् और ईप् प्रत्यय ही अधिक लगते हैं। आप का रूप कहीं पर काप् और डाप् के रूप में भी मिलता है। आप और ईप् में प् इत् चला जाता है। आप्प्रत्ययान्त शब्द के रूप सीता की तरह और ईपप्रत्ययान्त शब्द के रूप नदी की तरह चलते हैं। (ईप्यतः ८।४.७२) से ईप्प्रत्यय परे होने पर अकारान्त शब्द के 'अ' का लोप हो जाता है।
नियम ७६ क-(आवतः स्त्रियाम् २।३।१) अकारान्त नाम से स्त्रीलिंग में आप् प्रत्यय होता है । खट्वा, सर्वा, या, सा।