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वाक्यरचना बोध
१००. धिन् (श्रयति) सेवा करना धान करना। आ (आलम्बने) आलम्बन लेना
अभि (अभिषेके) अभिषेक करना प्र (प्रागल्भ्ये) दक्ष होना, वाचाल होना उद् (गर्वे) गर्व करना उद् (उच्चभवने) उच्च होना
१०८. षिध (सेति) जाना १०१. श्रृंत् (शृणोति) सुनना नि (निषेधे) निषेध करना प्रति (स्वीकारे) स्वीकार करना
प्रति (निषेधे) प्रतिषेध करना आ (स्वीकारे) स्वीकार करना
आ (आसेधे-राजाज्ञयावरोधे) राजा की सम् (संश्रवे) स्वीकार करना
आज्ञा से प्रतिवन्धित होना प्रति-प्रतिज्ञा करना
उद् (उच्चतायां) ऊंचा होना १०२. श्लिषंच (श्लिष्यति) आलिंगन
१०६. धुंन्त् (सुनोति) ऐश्वर्य होना करना
अभि (अभिषवे-सोमं निष्पादयति स्नाति वा) प्र (प्रश्लेषे) आलिंगन करना
___ सोमरस निष्पन्न करना, स्नान करना १०३. श्वसक (श्वसिति) श्वास लेना
११०. षोंच (स्यति) विनाश करना आ (आश्वासे) आश्वासन देना
वि+अव (उद्यमे बोधे च) उद्यम करना, वि (विश्वासे) विश्वास करना
बोध देना प्र (प्रश्वासे) प्रश्वास लेना
अनु+वि (अवबुद्धस्य पुनर्बोधे) जाने हुए नि (निश्वासे) निश्वास लेना
___ का पुनः बोध करना। १०४. षज (सजति) मिलना
१११. ष्टुंन्क् (स्तौति, स्तवीति) स्तुति प्र (प्रसंगे) अनुरक्त होना
करना अनु (अनुसंगे) आसक्त होना
प्र (प्रस्तावे) प्रस्तुत करना अभि (अभिषंगे-पराभवे) पराजित होना
सम्-परिचय करना १०५. षदलंज (सीदति) नष्ट होना, अभि-स्तुति करना जाना, विषाद करना
११२. ष्ठां (तिष्ठति) ठहरना प्र (प्रसादे) प्रसन्न होना
प्र (प्रस्थाने) प्रस्थान करना वि (विषादे) खिन्न होना
प्रति (प्रतिष्ठायां) प्रतिष्ठा करना अव (अवसादे) अवसाद करना, दुःख करना अधि (अधिष्ठाने) आधारभूत होना उद् (उन्मूलने) उखाडना
उद् (उत्थाने) उठना आ (नकट्ये) निकट होना
सम्-मरना, ठहरना १०६. षहङ् (सहते) सहन करना
अनु-अनुष्ठान करना उद् (उत्साहे) उत्साहित होना
अव-ठहरना, रहना १०७. षिचंन्ज् (सिञ्चति) सिंचन ११३. सू (सरति) जाना करना
प्र (प्रसारे) फैलाना नि (निषेके-गर्भाधाने) निषेक करना, गर्भा- अप (अपसरणे) दूर होना