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परिशिष्ट ४ प्रत्ययरूपावली
इस परिशिष्ट में ४०३ धातुओं के प्रत्ययों के रूप दिए गए हैं। दूसरे परिशिष्ट से पहले (पृ० २९६ से ३१६ तक) धातुओं की अकरादि अनुक्रमणिका है। उसमें इन धातुओं का क्रम तथा अर्थ दिया गया है। शतृ और क्वसु प्रत्यय परस्मैपदी धातुओं से होते हैं तथा शान और कान प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं से होते हैं। उपसर्ग के संयोग से परस्मैपदी धातु भी आत्मनेपदी बन जाती है इसलिए उसके शान और कान प्रत्यय के रूप भी चार्ट से आगे स्वतंत्र दिए गए हैं । उभयपदी धातुओं के शतृ और क्वसु प्रत्ययों के रूप चार्ट में तथा शान और कान प्रत्ययों के रूप चार्ट से आगे दिए गए हैं। क्वसु और कान प्रत्ययों के कृ, भू और अस् धातु के संयोग से तीन-तीन रूप बनते हैं। इन तीन रूपों में से कोई एक रूप देकर उसके आगे ३ लिखा है । तीन रूप इस प्रकार बनेंगे—चक्रिवान्, बभूवान्, आसिवान् । आत्मनेपद में चक्राणः, बभूवानः और आसान: रूप बनता धातु क्त णक तृच् शतृ/शान क्वसु/कान तव्य अञ्चु अञ्चितः आञ्चकः अञ्चिता अञ्चन् आचिवान् अञ्चितव्यम्
#. ६. 4. ३ .
अञ्जूर् अक्तः अञ्जकः अङ्क्ता अन् आजिवान् अङ्कतव्यम् अञ्जिता
अजितव्यम् अट अटितः आटक: अटिता अटन् आटिवान् अटितव्यम् अदं जग्धः आदकः अत्ता अदन् आदिवान् अत्तव्यम्
जक्षिवान् अनितः आनकः अनिता अनन् आनिवान् अनितव्यम् अर्च अर्चितः अर्चकः अर्चिता अर्चन् आनान् अचितव्यम्
अजितः अर्जकः अजिता अर्जन् आनन् िअजितव्यम् अर्ह अर्हितः अहंकः अहिता अर्हन् आनई वान् अहितव्यम् अव अवितः आवकः अविता अवन् आविवान् अवितव्यम् अशश 'आशितः आशक: अशिता अश्नन् अनाश्वान् अशितव्यम् अशूत् अष्टः आशक: अशिता अश्नुवानः आनशानः अशितव्यम्
अष्टा
अर्ज