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परिशिष्ट ४
है। क्तवतु प्रत्यय के रूप स्थानाभाव के कारण चार्ट से निकाल दिए हैं। उसके रूप के लिए क्त प्रत्यय के रूपों के आगे 'वान्' शब्द लगा दें। जैसे—गतः क्त प्रत्यय का रूप है। क्तवतु प्रत्यय का रूप होगा गतवान् । अन्तिम कोष्ठक में स्त्रीलिंग में होने वाले क्ति, ङ और अ प्रत्ययों में से जिस धातु से जो रूप बनता है वह दिया गया है । पाणिनी व्याकरण में इन प्रत्ययों की संज्ञा भिन्न है। उन-उन प्रत्ययों की संज्ञाओं को नीचे कोष्ठक में दिया जा रहा है।
णक (ण्वुल) शान (शानच्) कान (कानच्) तव्य (तव्यत्) अनीय (अनीयर्) अनट् (ल्युट) तुम् (तुमन्) यप् (ल्यप) क्ति (क्तिन्) । धातु रूपादर्श, क्रियारत्नसमुच्चय और हस्तलिखित प्रतियों में भी जो रूप नहीं मिले उसके लिए • चिन्ह दिया गया है।
तुम
अनीय
अनट अञ्चनीयम् अञ्चनम्
अञ्चितुम्
अञ्जनीयम् अञ्जनम्
क्त्वा यप क्ति/0/अ अक्त्वा
अक्तिः । अञ्चित्वा अङ्क्त्वा, अक्त्वा ० अक्तिः अजित्वा अटित्वा पर्यट्य अटितिः जग्ध्वा प्रजग्ध्य जग्धिः
अटनीयम्
अतुम् अजितुम् अटितुम् अत्तुम्
अटनम् अदनम्
अननीयम् अर्चनीयम् अर्जनीयम् अर्हणीयम् अवनीयम् अशनीयम् अशनीयम्
__ अननम्
अर्चनम् अर्जनम् अहणम् अवनम् अशनम् अशनम्
अनितुम् अचितुम् अजितुम् अहिंतुम् अवितुम् . अशितुम् अशितुम्
अनित्वा अचित्वा अजित्वा अहित्वा अवित्वा अशित्वा आशित्वा अष्ट्वा
प्राण्य अनितिः । समय॑ अर्चा समयं ० ...
० अर्हा उपाव्य ऊतिः प्राश्य आशितिः समश्य आष्टिः
अपान