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अकर्मक धातुएं
पाठ १० : धातुप्रकरण
लज्जासत्ता स्थितिजागरणं, वृद्धिक्षयभयजीवितमरणम् । शयनक्रीडारुचिदीप्त्यर्थं, धातुगणन्तमकर्मकमाहुः ॥
धातु - व्रीडच् ( व्रीड्यति ) लज्जा करना । लज, लस्ज (लजते, लज्जते) लज्जा करना । भू (भवति) होना । अस् ( अस्ति ) होना । ष्ठा ( तिष्ठति) ठहरना । आसक् (आस्ते ) बैठना । जागृक् ( जागति) जागना । वृधुङ् (वर्धते ) बढना । ञिभींक् ( बिभेति ) डरना । क्षि (क्षयति) क्षय होना । जीव ( जीवति) जीना। मंज् ( म्रियते ) मरना । रुचङ् (रोचते ) प्रिय लगाना, अच्छा लगना । दीपीच् ( दीप्यते) दीप्त होना | भांक् ( भाति ) दीप्त होना ।
शब्दसंग्रह
मातुलः ( मामा ) । मातुलपुत्रः ( मामा का बेटा ) । पुत्र: (बेटा) । स्वस्रीयः (भानजा ) । भागिनेय: ( भानजा ) । दोहित्र : ( लडकी का बेटा ) | पौत्रः ( पोता ) । प्रपौत्रः ( प्रपोता ) । मातृष्वस्रीयः (मौसेरा भाई ) । श्वसुर : (ससुर) । ज्येष्ठः (जेठ) । श्यालः ( शाला ) । मातृष्वसृपतिः ( मौसा ) | पितृष्वसृपति: ( फूफा ) । भगिनीपति: ( बहनोई) । पैतृष्वस्रीयः ( फूफेरा -माई ) ।
अव्यय - अत्र ( यहां ), कुत्र ( कहां), यत्र ( जहां ), तत्र ( वहां ), सर्वत्र . ( सब जगह ) ।
गो, दण्डिन् और पथिन् शब्दों के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट १ संख्या ७,६,५१) ।
धातु —ष्ठा धातु के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट २ संख्या ११) धातुप्रकरण
क्रियावाची शब्दों को धातु कहते हैं । धातु के सामान्यतया दो भेद हैं - अकर्मक और सकर्मक |
अकर्मक - जहां क्रिया का व्यापार और उसका फल एक निष्ठ होते हैं, उस क्रिया को अकर्मक कहते हैं । जैसे— रमणः हसति ( रमण हंसता है ) । यहां हंसने की क्रिया और उसका विनोद रूप फल दोनों 'रमण' नामक एक व्यक्ति में ही होते हैं इसलिए यह अकर्मक क्रिया है । अकर्मक धातु को पहचानने