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काल २ (भूतकाल)
आचार्यप्रवराः एकमासात् प्राग अत्र आगमन्—आचार्यप्रवर एक मास पहले यहां आये थे।
परश्वः तव पुत्रः अभवत्-परसों तुम्हारे पुत्र हुआ था। ह्य : मम उपवासः अभवत्-कल मेरे उपवास था।
पूर्वे मंगलवारे त्वं किं अकथय:-पूर्व मंगलवार को तुमने क्या कहा था ? द्यादि-इसका प्रयोग सामान्यभूत में होता है । जैसे—अहं तत्र
अगमम् -मैं वहां गया था। स: लेखं अलेखीत्-उसने लेख लिखा था। रामः कार्यं अकार्षीत्-राम ने कार्य किया था। गोष्ट्टयां कुमारप्रशान्तः निबंधं अपठीत्-गोष्ठी में कुमार
प्रशान्त ने निबन्ध पढा था। णबादि-इसका प्रयोग परोक्षभूत अर्थात् अपनी अवस्था से पहले जो हो गया हो उसमें होता है । जैसे—भिक्षुः बभूव-भिक्षु स्वामी हुए थे।
भरतं विजिग्ये बाहुबली-बाहुबली ने भरत को जीता था।
पार्श्वनाथः चतुर्यामं धर्म व्याजहार—पार्श्वनाथ ने चतुर्याम धर्म कहा था । तीर्थंकरः धर्म दिदेश-तीर्थकर ने धर्म की देशना दी थी।
संधिविचार ___ नियम २८-(असंधिरदसोमुमी १।२।३५)-अदस् शब्द के रूप के अन्त में जहां मु, मी हो जाते हैं उनकी स्वर परे होने पर भी संधि नहीं होती है । जैसे---अमुमु+ ईचा=अमुमु ईचा । अमी+अश्वाः=अमी अश्वाः ।
नियम २६-(ईदूदेद् द्विवचनं स्वरे १।२।३६)-जिन शब्दों के द्विवचन के अंत में ई, ऊ, और ए होते हैं उनसे आगे स्वर परे होने पर भी संधि नहीं होती है। जैसे-मुनी+एतौ = मुनी एतौ। साधू+इमौ =साधू इमौ । माले-आनय =माले आनय । पचेते+ अत्र=पचेते अत्र।
नियम ३०- (मणीवादीनां वा ११२।३७) मणि, रोदसी, दंपती आदि द्विवचनान्त शब्दों की स्वर परे होने पर संधि विकल्प से होती है। जैसेमणी+इव-मणीव, मणी इव । दंपती+इव= दंपतीव, दंपती इव । रोदसी+इव रोदसीव, रोदसी इव ।
नियम ३१-(ओन्निपातः १।२।३८) जिन निपात शब्दों के अन्त में 'ओ' हो तो उनसे परे स्वर होने पर भी संधि नहीं होती। जैसे-अहो+ अत्र - अहो अत्र । उताहो-!- अत्र - उताहो अत्र ।
नियम ३२- (धावोदितौ ११२।४२) संबोधन में 'ओ' अन्तवाले