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वाक्यरचना बोध
होता है । जैसे—शैक्षः पठति-शैक्ष पढता है। शिशुः हसति-शिशु हंसता है। रामः गच्छति-राम जाता है। सः वदति-वह बोलता है।
२. यावादि-इसका प्रयोग कर्तव्य का उपदेश, क्रिया की प्रेरणा और संभावना में होता है। जैसे
कर्तव्य का उपदेश-प्राणिनो न हिंस्यात्-प्राणियों की हिंसा नहीं करनी चाहिये।
क्रिया की प्रेरणा–प्रतिक्रमणमवश्यं कुर्यात्-प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिए।
भोजनं कुर्यात्-भोजन करना चाहिए। दशवकालिकं अधीयीत-दशवकालिक पढना चाहिए। अत्र आसीत—यहां बैठे। अत्र शयीत-यहां सोवें। व्रतं रक्षेत्-व्रत की रक्षा करें।
३. तुबादि-इसका प्रयोग किसी को आशीर्वाद देने, विधि और संभावना में होता है । जैसेआशीर्वाद-त्वं सुखी भव-तुम सुखी बनो।
चिरं जीवतु भवान्-आप चिरकाल तक जीएं । विधि- त्वं पाठं पठ-तुम पाठ पढो ।
प्रसीदन्तु गुरुपादाः-गुरुदेव प्रसन्न हों। संभावना-अत्र आस्ताम् --यहां बैठो।
अत्र शेताम्-यहां सोवो। व्रतं रक्षतु-व्रत की रक्षा करो।
संधिविचार नियम २४-(एदोतोरुपसर्गस्य लोप: १।२।२६) उपसर्ग के अवर्ण का लोप हो जाता है धातु का एकार और ओकार आगे हो तो। प्र+एजते = प्रेजते । उप+ओषति = उपोषति ।
नियम २५-(नत्येधत्योः १।२।२७) एति और एधते धातु का एकार परे हो तो उपसर्ग के अवर्ण का लोप नहीं होता। प्र+ एति=प्रेति । प्र+ एधतेप्रैधते ।
नियम २६-- (एवेऽनवधारणे १२।२६) अवर्ण का लोप हो जाता है अनिश्चय अर्थ में एव शब्द पर हो तो। अद्य+एव =अद्येव गच्छ। निश्चय अर्थ में हो तो—अद्य+एव = अद्यैव ।
नियम २७-(ओष्ठौत्वोः समासे वा ११२।३१) समास में अवर्ण से परे ओष्ठ और ओतु शब्द परे हो तो अवर्ण का लोप विकल्प से होता है। .