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पाठ ६ : काल १ (वर्तमान काल)
शब्दसंग्रह मुनिः (मुनि) । तरणिः (सूर्य)। ऋषिः (मुनि) अरिः (शत्र) । अग्निः (आग) । कविः (कवि) । भूपतिः (राजा)। नृपतिः (राजा) । यतिः (संन्यासी) । गिरिः (पहाड)। मरीचिः (किरण) । सेनापतिः (सेनापति) । रविः (सूर्य) । कपिः (बन्दर)। शकुनिः (पक्षी) । पतिः (पति) । सखि: (मित्र)।
धातु-जि-जये (जयति) जीतना। क्षि–क्षये (क्षयति) क्षय होना। इं—गतौ (अयति) जाना। दूं--गतौ (दवति) जाना। सुंप्रसवैश्वर्ययोः (सवति) उत्पन्न होना, ऐश्वर्य होना।
अव्यय-सत्यम् (सत्य), नक्तम् (दिनरात), दिवा (दिन), दोषा (रात्रि)।
मुनि शब्द के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट १ संख्या ३)
इकारान्त पुल्लिग शब्दों के रूप मुनि की तरह चलेंगे। पति, सुधी और सखि शब्द के रूप 'मुनि' शब्द से कुछ भिन्न चलते हैं। उन्हें परिशिष्ट १ संख्या ४७,४६,४८ को देखकर याद करो।
जि और दु धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ४,५)
'क्षि' धातु तक के रूप परस्मैपद में 'जि' की तरह और उकारान्त धातुओं के रूप 'दु' की तरह चलते हैं । 'ई' धातु के रूप कुछ भिन्न चलते हैं। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ४१)
वर्तमान काल काल के स्थूल रूप से तीन विभाग हैं-वर्तमानकाल, भूतकाल और भविष्यत्काल ।
इन तीनों कालों की संस्कृत में दस विभक्तियां होती हैं । वे ये हैं(१) तिबादि (२) यादादि (३) तुबादि (४) दिबादि (५) द्यादि (६) णबादि (७) क्यादादि (८) तादि (5) स्यत्यादि (१०) स्यदादि ।
वर्तमानकाल में प्रथम तीन विभक्तियों का प्रयोग होता है।
१. तिबादि (प्रारब्धः अपरिसमाप्तश्च कालो वर्तमानः) जो काल प्रारम्भ हो गया है, समाप्त नहीं हुआ है उसे वर्तमानकाल कहते हैं-ऐसा व्याकरणाचार्यों का कथन है। तिबादि विभक्ति का प्रयोग वर्तमानकाल में