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पाठ ५ : पुरुष और वचन
शब्दसंग्रह स: (वह) । तो (वे दोनों) । ते (वे सब) । त्वम् (तू) । युवां (तुम दोनों) । यूयं (तुम सब) । अहं (मैं)। आवां (हम दोनों) । वयं (हम सब)। अर्भकः (बालक)। नृपः (राजा)। नरः (मनुष्य) । कुर्कुरः (कुत्ता)।
नाम के आगे स्यादिप्रत्यय लगते हैं वैसे ही क्रिया के आगे तिप् आदि प्रत्यय लगते हैं। इन्हें तिबादिप्रत्यय कहते हैं।
___सोमपा और दन्त शब्द के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट १ संख्या ४५, ४६) ।
प्रथमपुरुष मध्यमपुरुष उत्तमपुरुष एकवचनभवति भवसि
भवामि द्विवचनभवतः भवथः
भवावः बहुवचनभवन्ति भवथ
भवामः इसी तरह पठ्, लिख्, गम् (गच्छ), धाव् आदि धातु के तिबादि के रूप चलेंगे। इंक् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या १३)
पुरुष, वचन कर्ता तीन भागों में विभाजित किये जाते हैं-प्रथमपुरुष, मध्यमपुरुष और उत्तमपुरुष । प्रथमपुरुष को अन्यपुरुष भी कहते हैं। संस्कृत में प्रत्येक पुरुष के तीन-तीन वचन होते हैं-एकवचन, द्विवचन और बहुवचन । जहां एक का बोध कराना हो वहां एकवचन, जहां दो का बोध कराना हो वहां द्विवचन और जहां दो से अधिक का बोध कराना हो वहां बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। नीचे लिखे चार्ट से सरलता से समझा जा सकता है
एकवचन द्विवचन प्रथम पुरुष- वह
वे दोनों वे सब मध्यम पुरुष- तुम
तुम सब उत्तम पुरुष
हम दोनों हम सब जहां क्रिया का सम्बन्ध कर्ता से होता है वहां क्रिया के रूप कर्ता के वचन के अनुसार चलते हैं । कर्ता में एकवचन हो तो क्रिया में भी एकवचन, कर्ता में द्विवचन हो तो क्रिया में भी द्विवचन और कर्ता में बहुवचन हो तो
बहुवचन
तुम दोनों