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पाठ ८१: एककर्तृक पूर्वकालिक क्रिया १ ( क्त्वा, रगम्)
शब्दसंग्रह
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मृद्वीका (अंगूर) जम्बू : ( जामुन ) । कदलीफलम् (केला) । बीज - पूर : ( बिजौरा नींबू) । उदुम्बरम् ( गूलर ) | कर्कन्धु: ( बेर) । श्रीपर्णिका (कायफल ) । अमृतफलम् ( नाशपाती) । आलुकम् (आलू बुखारा ) । तूतम् (शहतूत ) । नारिकेलम् ( नारियल ) । लीचिका ( लीची ) । स्वर्णक्षीरी (मकोय) ।
म् प्रत्यय के रूप
भावं भावं (भू) बार-बार हो करके । पायं पायं (पां) बार-बार पी करके । गामं गामं (गम्) बार-बार जा करके । वन्दं वन्दं ( वदि) बारबार वंदना करके, स्तुति करके । कारं कारं (कृ) बार-बार करके । आद आदं (अद्) बार-बार खा करके । यायं यायं (याक्) बार-बार जा करके । अध्यायं अध्यायं (अधि + इ ) बार-बार पढ करके । भायं भायं ( भी ) बारबार डर करके । दायं दायं (दा) बार-बार दे करके । भोजं भोजं (भुज् ) बार-बार खा करके ।
पूर्वकाल क्रिया ( क्त्वा, णम् )
एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया की जाती है वहां दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही हो उसे एककर्तृक कहते हैं । पूर्वकाल की क्रिया के साथ परकाल की क्रिया का प्रयोग आवश्यक है । ऐसी स्थिति में पूर्वकाल की धातु For और णम् प्रत्यय होता है । दोनों का अर्थ एक है, रूप भिन्न है । स भुक्त्वा व्रजति ( वह खाकर जाता है) । खाना पूर्व क्रिया है, 'जाना' पर क्रिया है । यहां दोनों का कर्ता एक ही है । भुक्तवति गुरौ शिष्यः व्रजति ( गुरु के खाना खाने के बाद शिष्य जाता है) यहां दो क्रिया दो कर्ता से संबंधित है इसलिए इसमें पूर्व काल में होने वाले प्रत्यय नहीं होंगे ।
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नियम
नियम ७२७ – ( णम् चाभीक्ष्ण्ये ६।११४४) एककर्तृक, अभीक्ष्ण्य अर्थ में पूर्वकाल में होने वाली धातु से णम् प्रत्यय विकल्प से होता है । सः भोजं भोजं व्रजति भुक्त्वा भुक्त्वा व्रजति । पायं पायं गच्छति, पीत्वा पीत्वा