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पाठ ७८ : भावकर्त्री (१)
शब्दसंग्रह
कारु: ( शिल्पी) । नापित: ( नाई) । रजकः ( धोबी) । निर्णेजक: ( ड्राईक्लीनर ) । कुलिकः (शिल्पि संघ का अध्यक्ष ) । तन्तुवाय: ( जुलाहा ) । सौचिकः (दर्जी) । चित्रकार: (चित्रकार, पेन्टर ) । स्वर्णकार : (सुनार) । शौल्विकः (तांबे के बर्तन बनाने वाला) । त्वष्टा (बढई ) । स्थपतिः (मिस्त्री) । अश्मचूर्णम् (सीमेंट) । इष्टका ( ईंट ) । स्यूति: ( सिलाई ) । यन्त्रम् (मशीन ) । उपहासचित्रम् (कार्टून) । बतिका ( ब्रुश ) । तक्षणी ( वसूला ) । अयोघनः ( हथौडी ) । करपत्रम् (आरी ) ।
घञ, न, कि, अल् प्रत्यय
भाव का अर्थ है क्रिया, अकर्तृ का अर्थ है कर्ता कारक को छोड कर । भावाऽकर्त्री का तात्पर्य है—कर्ता कारक को छोडकर शेष कारक और भाव में प्रत्यय होना । भावाकत्रों में होने वाले प्रत्यय कुछ पुल्लिंग में होते हैं और कुछ स्त्रीलिंग में ही होते हैं । स्त्रीलिंग में होने वाले प्रत्यय अगले पाठ में देखें ।
नियम ६९६ - (भावाऽकर्त्री: ५।४।६) भाव में और कर्ता छोडकर अन्य कारकों में सब धातुओं से घञ् प्रत्यय होता है । भाव में – पचनं पाकः, एवं रागः, त्यागः, । कर्म - प्रकुर्वन्ति तं इति प्राकारः । संप्रदान — दाशन्ते यस्मै स दाशः । अपादान - आहरन्ति यस्मात् इति आहारः । नियम ६६७- - ( हसाद् घञ् ६।१।११) हसान्त धातु से साधन और आधार में घञ् प्रत्यय होता है पुल्लिंग के संज्ञा विषय में । विदन्ति अनेन वेदः । चेष्टते अनेन चेष्टो बलम् । एत्य पचन्ति अस्मिन् इति आपाकः । आरामः, लेख:, बन्धः, वेगः, रागः, प्रासादः, अपामार्गः ।
. नियम ६८ - ( यजिरक्षियतिप्रच्छिस्वपो नः ५। २८२ ) इन धातुओं से भावाकत्रों में न प्रत्यय होता है । यज्ञः, रक्ष्णः, यत्नः, प्रश्नः, स्वप्नः ।
नियम ६६६- - ( उपसर्गोऽपिद्दाधः कि: ५।४।८४) उपसर्ग उपपद में हो, प इत जाने वाली दा धातु को छोडकर शेष दा धातु और धा धातु से कि प्रत्यय होता है । आदिः, प्रदिः, आधि:, प्रधिः, निधिः, संधि:, समाधिः ।