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पाठ ७०: ख,
खि प्रत्यय
शब्दसंग्रह
आहव: ( युद्ध ) । प्रहरणम् ( शस्त्र ) । आयुधम् ( शस्त्रास्त्र ) । आयुधागारम् (शस्त्रागार ) । वर्मन् (कवच ) । कार्मुकम् (धनुष ) । निस्त्रिश : ( खड्ग ) । कौक्षेयकः (तलवार) । विशिख: (बाण) । तूणीर: ( तूणीर) । शल्यम् (बछ) । प्रासः ( भाला ) । तोमर : ( गंडासा ) । गदा ( गदा ) । छुरिका ( चाकू ) । धन्विन् (धनुर्धर ) । शरव्यम् (लक्ष्य) । सांयुगीन : ( रणकुशल) । कबन्ध : ( धड ) । हस्तिपक : ( महावत ) | सादिन् ( घुडसवार) । वैजयन्ती ( पताका ) । अभ्रंकष : ( बादल या आकाश को छूने वाला) | सर्वंकष : ( सबको पीडित करने वाला) । करीषंकष : ( उपलों के छोटे टुकडों को उड़ाने वाला) । मद्रंकरः, भद्रंकरः ( कल्याण करने वाला) । पुरंदरः (इन्द्र) । कुक्षिभरिः, उदरंभरिः ( पेट भरने वाला, पेटू ) ।
ख, खि प्रत्यय
ख प्रत्यय कर्ता में होता है, पूर्वपद में कर्म रूप में कोई शब्द होना चाहिए । ख में ख् इत् जाने से कर्म में मुम् (म्) का आगम होता है । ख प्रत्ययान्त शब्द कर्ता के रूप में व्यवहृत होता है ।
नियम ६१३( प्रियवशयोर्वदे : ख: ५ | २|३४ ) प्रिय और वश शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो वद् धातु से ख प्रत्यय होता है । प्रियं वदति इति प्रियंवदः । वशंवदः ।
नियम ६१४ – (सर्वे सहः ५|२| ३७ ) सर्व शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो सह धातु से ख प्रत्यय होता है । सर्वं सहते इति सर्वंसहः ।
नियम ६१५ - ( कूलाभ्रकरीषेषु च कष: ५।२।३८ ) कूल, अभ्र, करीष और सर्व शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो कष् धातु से ख प्रत्यय होता है । कूलंकषा नदी । अभ्रंकषो गिरिः । करीषंकषा वात्या । सर्वकषः खलः ।
नियम ६१६ - ( मे घर्तिभयाभयेषु कृन: ५। २।३६ ) मेघ, ऋति, भय, और अभय शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो कृन् धातु से ख प्रत्यय होता है । मेघंकरः । ऋतिर्गतिः सत्यता वा ऋतिकरः । भयंकरः, अभयंकरः ।
नियम ६१७- ( क्षेमप्रियमद्रभद्रेष्वण् च ५।२।४० ) क्षेम, प्रिय, मद्र और भद्र शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो करोति (कृ) धातु से अण् और ख