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ख, खि प्रत्यय
२३६ प्रत्यय होता है । क्षेमं करोति-क्षेमकारः, क्षेमंकरः । प्रियकार:, प्रियंकरः । मद्रकारः, मद्रंकरः । भद्रकार:, भद्रंकरः ।
नियम ६१८- (तीर्थे तौ वा ५।२।४१) तीर्थ शब्द पूर्वपद में कर्मरूप में हो तो करोति (कृ) धातु से अण, ख और ट प्रत्यय होते हैं। तीर्थं करोति= तीर्थकारः, तीर्थंकरः, तीर्थकरः ।
नियम ६१६-- (तृभृवृजितपिदमिसहिभ्यः खः संज्ञायाम् ५।२।४२) कर्म उपपद में हो तो इन धातुओं से ख प्रत्यय होता है, संज्ञा के विषय में । रथंतरति रथंतरं साम । विश्वंभरा वसुन्धरा । पतिवरा कन्या । धनंजयोऽर्जुनः । शत्रुतपो राजः । बलिं दाम्यति दमयति वा=बलिंदमः कृष्णः । अरिदमः, शत्रुसहः-ये दो राजा हैं ।
नियम ६२०-(धारेर्धर् च ५।२।४३) कर्म उपपद में हो तो धारय् धातु से संज्ञा के विषय में ख प्रत्यय होता है । धारय् धातु को धर् आदेश हो जाता है । वसुं धारयति इति वसुंधरा पृथ्वी।
नियम ६२१ - (पुरंदरभगंदरौ ५।२।४४) पुरंदर, भगंदर-ये दो शब्द ख प्रत्ययान्त निपात हैं । पुरो दारयति-:पुरंदरः शक्रः । भगं दारयति= भगंदरः व्याधिः ।
नियम ६२२-- (कुझ्यात्मोदरेषु भृनः खि: ५।२।४५) कुक्षि, आत्म और उदर शब्द कर्मरूप में उपपद में हो तो भृन् धातु से खि प्रत्यय होता है । कुक्षिभरिः, आत्मभरिः, उदरंभरिः ।
प्रयोगवाक्य प्रियंवदानां न भवति कोऽपि रिपुः । साधवः सर्वेषां मद्रंकराः भद्रंकरा वा भवन्ति । तीर्थकाराणां कियन्तः अतिशयाः भवन्ति ? स मम वशंवदोऽस्ति । मुनिः सर्वसहो भवति । वसुंधरेयं भारतभूमिः । सांयुगीनोऽयं पुरुषः यत्र कुत्रापि गच्छति तत्रव साफल्यमेति । सादिनः कुत्र व्रजन्ति ? धन्विनः वने कदा ययुः ? उदरंभरिरजः कुत्र गतः ?
संस्कृत में अनुवाद करो युद्ध के समय अनेक शस्त्रों की जरूरत होती है। राजा के शस्त्रागार में बहुत शस्त्र हैं । सैनिक सुरक्षा के लिए कवच पहनता है। शिकारी के पास धनुष और बाण हैं। मूर्ख बन्दर ने तलवार से राजा का सिर काट दिया। सैनिक के पास बी, भाला और गंडासा हैं। सैनिक गदा से युद्ध करता है। भाभी चाकू से आम काटती है। धनुर्धर लक्ष्य साधता है। रणकुशल योद्धा ही विजयी होता है । यह धड किसका है ? महावत हाथी पर बैठ कर घूमता है । घुडसवार घोडे पर बैठा है । दयालु राजा की विजय-पताका सर्वत्र फैल गई। प्रिय बोलने वाले के अपरिचित भी परिचित हो जाते हैं। यह सांप