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व्यञ्जन
प्राण ।
उच्चारण के अनुसार व्यंजनों के दो भेद हैं- अल्पप्राण और महा
महाप्राण - जिन वर्णों में 'ह' की ध्वनि का प्राण मिलता है वे महाप्राण कहलाते हैं । जैसे - क + ह = ख, च + ह = छ । इस प्रकार के व्यंजन महाप्राण कहलाते हैं । ये १४ हैं - वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ अक्षर ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ और श, ष, स, ह ।
अल्पप्राण -- जिन वर्णों में 'ह' की ध्वनि का प्राण नहीं मिलता वे सब - अल्पप्राण कहे जाते हैं। ऊपर के कहे गये १४ व्यंजनों को छोडकर शेष १६ व्यंजन अल्पप्राण हैं । वे ये हैं—क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प,ब,म, य, र, लव ।
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श, ष, स,ह को ऊष्म वर्ण भी कहा जाता है, क्योंकि इनके उच्चारण में विभिन्न स्थानों का परस्पर संघर्ष होता है और भीतर से श्वास जोर से लेना पडता है ।
पांच वर्गों के २५ व्यंजनों को स्पर्शवर्ण भी कहते हैं, क्योंकि इनके उच्चारण में जीभ, कण्ठ, तालु आदि का स्पर्श होता है ।
य, र, ल, व को अन्तस्थ कहते हैं ।
ङ्, ञ, ण्, न्, और म् को अनुनासिक कहते हैं । प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय अक्षर तथा श, ष, स और विसर्ग को अघोष या परुषव्यंजन कहते हैं । प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण तथा य, र, ल, ब, ह को घोष या मृदुव्यंजन कहते हैं ।
संधिविचार नियम ४ - ( कुटुतुपु वर्गाः १ । १ । १ ) कुवर्ग में क, ख, ग, घ, ङ, व्यंजन होते हैं । चुवर्ग में च, छ, ज, झ, ञ व्यंजन होते हैं । वर्ग में ट, ठ, ड, ढ, ण व्यंजन होते हैं । वर्ग में त, थ, द, ध, न व्यंजन होते हैं । वर्ग में प, फ, ब, भ,
म
व्यंजन होते हैं ।
नियम ५. - ( आद्यन्ताभ्यां प्रत्याहारे १|१|५ )
प्रत्याहार में दो वर्णों का उल्लेख होता है । उसमें आदि के वर्ण से लेकर अन्त तक के वर्ण ग्रहण किये जाते हैं । प्रत्याहार के वर्णों की रचना इस प्रकार है
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अइउऋलृ - एऐओओ - ह्यवरल - ञणनङ म झढधघभ - जडदगब-खफछठथ
चटतकप - शषस ।
जैसे - अस प्रत्याहार में अ से लेकर स तक के सारे वर्ण और झभ