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पाठ ५८ : यप्रत्यय
शब्दसंग्रह (यङ्प्रत्यय के रूप) बोभूयते (भू) बार-बार होता है । जंगम्यते (गम्) बार-बार जाता है । जाज्वल्यते (ज्वल) बार-बार जलता है। पापच्यते (पच्) बार-बार पकाता है । अटाट्यते (अट) बार-बार घूमता है । अरार्यते (ऋ) बार-बार पाता है । जाजायते (जनी) बार-बार उत्पन्न होता है। लोलुप्यते (लुप्) बार-बार लुप्त होता है । सासद्यते (सद्) बार-बार जाता है। नरीनृत्यते (नृत्) बार-बार नाचता है । पेपीयते (पां) बार-बार पीता है। जेघ्नीयते (हन्) बार-बार मारता है । चेचीयते (चिं) बार-बार चयन करता है। वावश्यते (वश्) बार-बार शोभित होता है । वावाञ्छ्यते (वाछि) बार-बार चाहता है । तात्यज्यते (त्यज्) बार-बार छोडता है। चाखाद्यते (खाद्) बार-बार खाता है। जागद्यते (गद्) बार-बार बोलता है। दरीदृश्यते (दृश्) बार-बार देखता है। शाशस्यते (शास्) बार-बार शासन करता है । रारक्ष्यते (रक्ष्) बार-बार रक्षा करता है । तेष्ठीयते (ष्ठां) बार-बार बैठता है । ननम्यते (नम्) बार-बार झुकता है । जेहीयते (ओहांक) बार-बार छोडता है । जाहास्यते (हस्) बार-बार हंसता है । धातु-भू धातु के यङ्प्रत्यय के रूप याद करो (देखो परिशिष्ट ३)
यप्रत्यय यङन्त में यङ् प्रत्यय आता है । आत्मने पद होता है और प्रत्यय से पहले इट् आ जाता है । यङ्प्रत्यय सन् की तरह द्वित्व होता है, पर सब धातुओं से नहीं । प्रत्यय पृथक्-पृथक् धातुओं से भिन्न-भिन्न अर्थों में आता है।
नियम ५१४-(हसादेरेकस्वराद् ४।११५) हसादि और एक स्वर वाली धातुओं से अधिक या बार-बार के अर्थ में यङ् प्रत्यय विकल्प से होता है। (आच्चानीगादेर्यङ: ४।१।१०२) से पूर्व को आकार और गुण होता है। पच-पापच्यते । भू–बोभूयते।
__नियम ५१५-- (अटयर्त्यशूर्गुसूत्रिमूत्रिसूचिभ्य: ४।१।६) अटि आदि धातुओं से अधिक या बार-बार के अर्थ में यङ् प्रत्यय होता है। अटिअटाट्यते । इति ऋच्छति वा--अरार्यते। अश्नुते अश्नाति वा–अशाश्यते । ऊर्गु-प्रोर्णोनूयते। सूत्रण्–सोसूत्र्यते। मूत्रण्-मोमूत्र्यते सूचण्