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वाक्यरचना वोध परस्मैपद और आत्मनेपद रहती है। सकर्मक और अकर्मक का नियम भी उसी के अनुसार है। सन् प्रत्यय का स शेष रहता है। पूर्वनिमित्त मिलने से स का ष भी हो जाता है ।
सनन्त के रूप बनाने का नियम नियम ५०६-(सन्यङश्च ४।१।७४) सन् और यङ् प्रत्यय परे होने पर धातु का पहला एक स्वर (व्यंजनसहित) द्वित्व हो जाता है।
नियम ५०७-(ऋस्मिपूङञ्जशूक-ग-दृ-धृ-प्रच्छिभ्यः ४।३।६७) इन धातुओं को सन् प्रत्यय परे होने पर इट् होता है।
ऋअरिरिषति । स्मि–सिस्मयिषते । पूङ्-पिपविषते । अअञ्जिजिषति । अशू-अशिशिषते । क-चिकरिषति, चिकरीषति । गजिगरिषति, जिगरीषति ।
नियम ५०८-(इवन्तर्धभ्रस्जदम्भश्रिस्वयूर्णभरज्ञपिसनितनिपतिदरिद्रावद्भ्य: सनः ४।३।६६) इवन्त, ऋदन्त और ऋध् आदि धातुओं से इट् प्रत्यय विकल्प से होता है। दिव्-दुद्यूषति, दिदेविषति। सिव्—सुष्यूषति, सिसेविषति । स्व-सिस्वरिषति, सुस्वर्षति । ऋध्-ईहँति, अदिधिषति । श्रि–शिश्रीषति, शिश्रयिषति । भ्रस्ज्-विभ्रक्षति, विभक्षति । यु–युयूषति, यियविषति । ऊर्गु-ऊर्जुनूषति, ऊर्जुनविषति, ऊर्जुनविषति । भर—बुभूर्षति, बिभरिषति । ज्ञपण्-जिज्ञापयिषति, जिज्ञपयिषति। सन्–सिषासति, सिसनिषति। तन-तितंसति, तितांसति, तितनिषति। पत्-पित्सति, पिपतिषति । दरिद्राक्-दिदरिद्रासति, दिदरिद्रिषति । वृ-वुवर्षति, विवरिषति, विवरीषति ।
(सन्यनिटि दीर्घः ३।४।८१) स्वरान्त धातु दीर्घ हो जाती है, अनिट् सन् प्रत्यय परे होने पर। चि-चिकीषति, चिचीषति । जि-जिगीषति । तुष-तुतूषति । ष्टु-तुष्टूपति । कृ—चिकीर्षति ।
नियम ५०६-(ज्ञप्याप्योर्जीपीपौ ४।१।१४०) ज्ञप् को जीप और आप् धातु को ईप आदेश होता है, सन् प्रत्यय परे होने पर । जीप्सति, ईप्सति ।
नियम ५१०- (ऋधईर्त ४।१।१३६) ऋध् को ईर्त आदेश होता है, सन् प्रत्यय परे होने पर । ईसति ।
नियम ५११- (दम्भेधिब्धीपौ ४।१।१४१) दंभ धातु को धिप् और धीप आदेश होता है सन् प्रत्यय परे होने पर । धिप्सति, धीप्सति ।
नियम ५१२-(सनि ४।३।४७) झस आदि वाला सन् प्रत्यय परे हो तो जन्, सन् और खन् धातुओं के अंत को आ आदेश हो जाता है। सिसाषति । झस सन् न होने पर सिसनिषति ।