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पाठ ५६ : सन्नन्त १
भू
शब्दसंग्रह ( सन्नन्त के रूप ) (भवितुमिच्छति ) । तिष्ठासति ( स्थातुमिच्छति ) । जिगमिषति ( गन्तुमिच्छति ) । जिज्वलिषति ( ज्वलितुमिच्छति ) । जिहसिषति ( हसितुमिच्छति ) । रुरुदिषति ( रोदितुमिच्छति ) । निनीषति (नेतुमिच्छति ) । पिपक्षति ( पक्तुमिच्छति ) । पिपठिषति (पठितुमिच्छति ) । चिक्षिप्सति ( क्षेतुमिच्छति ) । बिभणिषति ( भणितुमिच्छति ) । प्रविविक्षति ( प्रवेष्टुमिच्छति ) । मुमुक्षति ( मोक्तुमिच्छति ) । पिपृच्छिषति ( प्रष्टुमिच्छति ) । पिपासति ( पातुमिच्छति ) । ज्ञीप्सति ( ज्ञातुमिच्छति ) । ईप्सति (आप्तुमिच्छति ) । धित्सति ( धातुमिच्छति ) । भित्सति ( भेत्तुमिच्छति ) । दित्सति ( दातुमिच्छति ) । लिप्सते ( लब्धुमिच्छति ) । दिधक्षति ( दग्धुमिच्छति ) । शुश्रूषते ( श्रोतुमिच्छति ) । चिचलिपति ( चलितुमिच्छति ) । विभ्रमिषति (भ्रमितुमिच्छति ) । चिकीर्षति ( कर्तुमिच्छति ) । दिदृक्षते ( द्रष्टुमिच्छति ) । जिघत्सति (अत्तुमिच्छति ) । पित्सति, पिपतिषति ( पतितुमिच्छति ) । तितीर्षति (तरीतुमिच्छति ) । जिघांसति ( हन्तुमिच्छति ) ।
सन्नन्त के दसों लकारों के रूप याद करो । ( देखें
नोट- भू धातु परिशिष्ट ३ ) ।
सन्नन्त
के अन्त में
सन्नन्त शब्द सन् + अन्त से बना है । जिस धातु सन् प्रत्यय आता है उसे सन्नन्त कहते हैं । तुम् प्रत्यय के आगे इच्छति का प्रयोग करने से जो अर्थ होता है उसी अर्थ में सन् प्रत्यय आता है | ( इच्छाया मेककर्तृककर्मणोऽतत्सनो वा ४।१।१६ ) कर्मभूत, कर्मसदृश या कर्मरूप में धातु से इच्छा के अर्थ में सन् प्रत्यय होता है । कर्मभूत धातु और इच्छति धातु का कर्ता एक ही होना चाहिए । इच्छति का प्रयोग कर्मभूत ( कर्मकारक) के साथ होने से ही सन् प्रत्यय आता है अन्य कारकों के साथ होने से नहीं आता । धातु से एक बार सन् प्रत्यय आने के बाद उस सन्नन्त रूप से दूसरी बार सन् प्रत्यय नहीं आता । जैसे— कर्तुं इच्छति = चिकीर्षति । चिकीर्षितुं इच्छति, यहां सन् प्रत्यय नहीं होता ।
गमनेन इच्छामि । यहां इच्छामि क्रिया साधन कारक के साथ है इसलिए सन् प्रत्यय नहीं होता । सन् प्रत्यय आने के पहले गणों में जो धातु परस्मैपद या आत्मनेपद थी वह सन् प्रत्यय के बाद भी पूर्ववत्