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तद्धित १५ ( ईषदसमाप्त, अभूततद्भाव आदि )
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नियम ४८४ - ( नाम्नः प्राग् बहुर्वा ८२८ ) ईषद् असमाप्त अर्थ में नाम से बहु प्रत्यय होता है और वह नाम से पहले लगता है । ईषद् असमाप्तः पटुः– बहुपटुः । बहुभुक्तं, बहुमृदु:, बहुपीतम् ।
प्रयोगवाक्य :
महेन्द्रः वदतिरूपम् । मधुकरः गायकरूपोऽस्ति । अयं कविपाशः कुत्र याति ? अलंकारमयी भाषा केभ्यः न रोचते । सा घृतकं शाकं खादति । शिशुः धूल्या अमलिनं वस्त्रं मलिनीकरोति । मंगलायाः पुस्तकं कः अचूचुरत् ? पितामही जिनं अपूपुजत् । जननी शिशुं पालयति । भ्राता भगिनीं स्नेहयति । भूपः अमात्येन साकं मन्त्रयते । दीनः धनं स्पृहयति । गां क: अहिंसयत् ? कविः काव्यं रचयति ।
सम्यक् मार्ग अन्वेषय |
संस्कृत में अनुवाद करो
अनाज की मंडी नगर से कितनी दूर है ? कोल्हुघर में कौन जा रहा
।
नाई की दुकान पर किस शहर में शराब
है ? शहरों में अनेक क्लब हैं। मंडी में अनेक दुकानें हैं आज कोई नहीं है । आज अध्यापकों की हडताल है । का कारखाना है । जागीरदार भूमि की सुरक्षा करता है। रानी दोनों क्या कर रही थी ? बगावत करने वालों को किसने पकडा ? राजकुमार का राजतिलक कब होगा ? शहंशाह यहां कब आयेंगे ?
पटरानी और बडी
तद्धित के प्रत्ययों का प्रयोग करो
सुशील कुशल गायक है । जयप्रज्ञा अच्छा गाती है । कलाकारों में कौन निम्न है ? यह सब्जी लवणमय है । यह स्थान वृक्ष रहित है । आचार्य अपटु को भी पटु बना देते हैं । इस बात को किसने आत्मसात् किया है ? यह तैल खराब है ।
धातु का प्रयोग करो
आजकल लोग साहित्य की चोरी करते हैं । जिनेश्वर देव की भाव पूजा करो। अपनी रक्षा करो। माता पुत्र पर स्नेह करती है । आचार्य श्री किससे मन्त्रणा करते हैं ? तुम क्या चाहते हो ? आत्मा को खोजो । तुमने कौन-सा काव्य बनाया है ? मृग को किसने मारा है ?
अभ्यास
१. हिन्दी में अनुवाद करो—
ये मनो वशीकुर्वन्ति ते सफलीकुर्वन्ति पौरुषं जन्म । अहिंसा न केवलं कृतान्तकार्या अपितु स्वीकार्या । यो देवीभवति सोऽपि मानवीभवितुमभिलषति । गृहस्वामी गां अन्वेषयति । एतद् वस्तु कः अचूचुरत् ? मुनिसुव्रतः गायकरूपोऽस्ति ।