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वाक्यरचना बोध जिसकी प्रचुरता या प्रधानता हो उसे प्रकृत कहते हैं । प्रकृत अर्थ में होने वाले नाम से मयट प्रत्यय होता है। जिस मिठाई में घृत की प्रधानता है उसे घृतमयं कहेंगे । वैसे ही दधिमयं शाकम् ।
नियम ४७५-- (अस्मिन् ८।२।१६) प्रकृत अर्थ में होने वाले नाम से सप्तमी के अर्थ में मयट् प्रत्यय होता है। अन्नं प्रकृतं अस्मिन् –अन्नमयं भोजनम् । अपूपमयं पर्व ।
नियम ४७३- (कुत्सिताल्पाज्ञातेषु ८।२।४७) कुत्सित, अल्प और अज्ञात इन तीन अर्थों में कच् प्रत्यय होता है। तीनों में जितने अर्थ नाम के साथ लग सकते हों लगाना चाहिए। जैसे-घृतकं, तैलकं । यहां तीनों अर्थ लग सकते हैं। अश्वकः, वृक्षकः, पटकः इत्यादि ।
नियम ४७७-(ह्रस्वे ८।२।६०) ह्रस्व अर्थ में शब्द और क्रिया के रूप से कच् आदि प्रत्यय होते हैं । ह्रस्व: पट:-पटकः । वृक्षकः, वंशकः, वेणुकः, नरकः, वरकः, शाटकः । ह्रस्वे पचति-पचतकि ।
___ नियम ४७८- (त्यादिसर्वादेरक् प्राक् टे: ८।२।४३) त्याद्यन्त और सर्वादि शब्दों से कुत्सित, अल्प, अज्ञात अर्थ में अक् प्रत्यय होता है टि से पहले । ह्रस्वं पचति- पचतकि । पचतकः । पचन्तकि । सर्वे ह्रस्वः-सर्वके, विश्वके ।
नियम ४७६-(अभूततद्भावे ....८।२।१८) जो नहीं था उसका उस रूप में होने को अभूततद्भाव कहते हैं । कृ, भू और अस् इन तीन धातुओं के योग में अभूततद्भाव के अर्थ में च्चि प्रत्यय होता है।
नियम ४८०-(ईश्च्वाववर्णस्याऽनव्ययस्य ४।१।६०) अव्यय को छोडकर अवर्णान्त शब्द के अन्तिम अ के स्थान पर ई हो जाता है और च्वि प्रत्यय का लोप हो जाता है। अशुक्लं शुक्लं करोति-शुक्लीकरोति वस्त्रम् । अशुक्लः शुक्लो भवति-शुक्लीभवति, शुक्लीस्यात् वस्त्रम् ।
नियम ४८१- (च्चियग्यफ्यादादियक्येषु ४।१।५१) चि आदि प्रत्यय परे होने पर पूर्वस्वर दीर्घ हो जाता है। अशुचिं शुचि करोति-शुचीकरोति । शुचीभवति । शुचीस्यात् ।
नियम ४८२-(कात्स्न्ये साद् वा ८।२।२२) सम्पूर्ण रूप से परिवर्तन होने पर सात् प्रत्यय विकल्प से होता है । सर्वं काष्ठं अनग्नि अग्नि करोतिअग्निसात् करोति, अग्निसात् भवति, अग्निसात् स्यात् । पक्ष में अग्नीकरोति, अग्नीभवति, अग्नीस्यात् ।।
नियम ४८३- (अतमादेरीषदसमाप्ते कल्पदेश्यदेशीयाः ८।२७) तम आदि रहित त्याद्यन्त और नाम से ईषद् असमाप्त (पूर्णता में थोडी कमी) के अर्थ में कल्प, देश्य, देशीय प्रत्यय होते हैं । ईषद् असमाप्तं पचतिपचतिकल्पं, पचतिदेश्य, पचतिदेशीयम् । ईषद् असमाप्तं गुड:-गुडकल्पा. द्राक्षा, गुडदेश्या द्राक्षा, गुडदेशीया द्राक्षा।