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पाठ ५१ : तद्धित १४ ( तर, तम, इष्ठ, ईयस् )
शब्दसंग्रह
केककिता ( कंघी ) । छत्रम् (छत्ता ) । चित्रम् ( तस्वीर) । वति: ( दीये बत्ती) । वीजनम् ( पंखा ) । प्रतिच्छाया ( फोटो ) । लोमाकर्षकः ( ब्रुश ) पेटकः (संदूक) । शवाच्छादनम् ( कफन ) । पट्टि ( तख्ती ) । श्राद्धम् (मरे के निमित्त देना ) । अरघट : ( अरहट ) । पोटकी ( कोल्हू ) । पेषिणी (चक्की) । जामिक: (चरखा) ।
धातु — डूक्रींश् — द्रव्यविनिमये ( क्रीणाति, क्रीणीते) खरीदना । ग्रहश् – उपादाने (गृह्णाति, गृह्णीते ) ग्रहण करना । ज्ञांश् – अवबोधने ( जानाति ) जानना । पून् – पवने ( पुनाति, पुनीते ) साफ करना । लून्श्छेदने (लुनाति, लुनीते) काटना । धन्श् – कम्पने ( धुनाति, धुनीते ) कांपना । स्तन्श् - आच्छादने ( स्तृणाति, स्तृणीते) आच्छादन करना । मन्थश्— बिलोडने ( मथ्नाति ) मथना । बन्धंश् — बन्धने ( बध्नाति) बांधना । मुषश्स्तेये (मुष्णाति ) चुराना । अशश् - भोजने ( अश्नाति ) खाना । पुषश् – पुष्टौ ( पुष्णाति ) पुष्ट करना ।
की, ग्रह और ज्ञा धातु के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट २ संख्या १७,४६,४८) ।
पून्श् से लेकर पुषश् धातु के रूप दिबादि तक और अशशु के तुबादि तक ग्रह की तरह चलते हैं । शेष रूप परिशिष्ट २ में देखें ( संख्या ११८ से १२४) । तर, तम, इष्ठ, इयस्
दो की तुलना में एक को उससे अच्छा बताने के लिए तर और सबसे अच्छा बताने के लिए तम प्रत्यय आता है । अयं अनयोः प्रकृष्टः पटुः - पटुतरः । इन दोनों में यह पटु है । इसी प्रकार आढ्यतरः, कुशलतरः । अयं एषां प्रकृष्टः शुक्ल:- शुक्लतमः ( यह सबसे अधिक सफेद है ) । पटुतमः - यह सब में पटु है । नियम ४५६ - ( गुणाङ्गादिष्ठेयसू तदर्थे वा ८।२।५ ) तर के अर्थ में ईयस् और तम के अर्थ में इष्ठ प्रत्यय होता है । पटुतर: पटीयान् । पटुतम: पटिष्ठः । लघिष्ठः, लघुतमः । गुरुतमः, गरिष्ठः ।
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नियम ४६० - ( स्थूलदूरयुव० ८|४|४२ ) स्थूल, दूर, युव, क्षिप्र, क्षुद्र इन शब्दों में य,र,ल,व, का लोप हो जाता है और गुण हो जाता है ञि, इष्ठ, और ईयस् प्रत्यय परे होने पर । स्थूल - स्थविष्ठः, स्थवीयान् । दूर – दविष्ठः,