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वाक्यरचना बोध
अ+इ मिलकर ए बनता है। आ+ इ मिलकर ए बनता है। अ+ ए मिलकर ऐ बनता है। आए मिलकर ऐ बनता है। अ+उ मिलकर ओ बनता है। आ+-उ मिलकर ओ बनता है। (देखें पृष्ठ ३ नियम २)
स्वरों के ३ भेद हैं-ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत । ह्रस्व की १ मात्रा, दीर्घ की २ मात्रा और प्लुत की ३ मात्रा होती है। प्लुत के आगे ३ लिखकर उसका संकेत करते हैं। जैसे आ ३ । यहां आ दीर्घ नहीं, प्लुत है।
____ जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं-सवर्ण और असवर्ण अर्थात् सजातीय और विजातीय ।
. सवर्ण-जिन वर्णों का स्थान और आभ्यन्तरप्रयत्न एक होता है, उन्हें सवर्ण कहते हैं । अ, आ परस्पर सवर्ण हैं । इसी प्रकार इ, ई तथा उ, ऊ सवर्ण हैं।
असवर्ण-जिन वर्णों का स्थान और आभ्यन्तरप्रयत्न समान नहीं होता उन्हें असवर्ण कहते हैं । अ और इ, अ और उ असवर्ण हैं ।
उच्चारण के अनुसार स्वरों के दो भेद और हैं-सानुनासिक और निरनुनासिक।
सानुनासिक-जिन वर्णों का उच्चारण मुख और नासिका के संयोग से होता है, उन्हें सानुनासिक कहते हैं। - जैसे--अं, आं, ईं आदि । ङ, ञ, ण, न, म अनुनासिक ही होते हैं ।
निरनुनासिक-जिन वर्णों का उच्चारण नाक की सहायता के बिना होता है, उन्हें निरनुनासिक कहते हैं । जैसे-अ, आ, इ आदि ।
___ यदि मुंह से पूरा-पूरा श्वास निकाला जाये तो शुद्ध निरनुनासिक ध्वनि निकलती है। किन्तु यदि श्वास का कुछ भी अंश नाक द्वारा निकाला जाये तो अनुनासिक ध्वनि निकलती है । अनुनासिक स्वर का चिह्न चन्द्र-बिंदु (-) है।
स्वरजन्य अक्षर-स्वरों से बने हुए अक्षर को स्वरजन्य अक्षर कहते हैं। जैसे
इ अथवा ई स्वर अ के साथ मिलकर य बनता है । उ अथवा ऊ स्वर अ के साथ मिलकर व बनता है। ऋ अथवा ऋ स्वर अ के साथ मिलकर र बनता है । ल अथवा ल स्वर अ के साथ मिलकर ल बनता है ।
(देखें पृष्ठ ३ नियम ३)