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पाठ १ : अक्षर और वर्ण
अक्षर-जिसके दो टुकडे न हो सके उसे अक्षर कहते हैं। जैसे-अ, इ, उ, ऋ, लु।
वर्ण-प्रत्येक पूर्ण (स्वर सहित) ध्वनि को वर्ण कहते हैं। जैसेक, ख, ग......"। संस्कृत में कुल ४७ वर्ण हैं। उनमें १४ स्वर और ३३ व्यंजन हैं।
स्वर स्वर-अन्य वर्ण की सहायता के बिना जिसका उच्चारण हो सके उसे स्वर कहते हैं । अ, आ, इ, ई, उ,ऊ, ऋ, ऋ, लु, ल, ए, ऐ, ओ, औ-ये स्वर
उत्पत्ति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं-शुद्धस्वर और संधिस्वर ।
शुद्धस्वर-जो स्वर बिना किसी संयोग के बनता है उसे शुद्ध स्वर कहते हैं । अ, इ, उ, ऋ, लु–ये पांच शुद्धस्वर हैं। शुद्धस्वर को मूल स्वर या ह्रस्व स्वर कहते हैं।
संधिस्वर–दो स्वरों के संयोग से जो स्वर बनता है उसे संधिस्वर कहते हैं। संधिस्वर के दो भेद हैं-१. दीर्घ संधिस्वर
२. संयुक्त संधिस्वर दीर्घ संधिस्वर-एक जैसे स्वरों के मेल से जो स्वर बनता है उसे दीर्घ संधिस्वर कहते हैं। जैसे
अ+अ मिलकर आ बनता है। अ+आ मिलकर आ बनता है। इ+इ मिलकर ई बनता है। इ+ई मिलकर ई बनता है। उ+उ मिलकर ऊ बनता है। उ+ऊ मिलकर ऊ बनता है। ऋ+ऋ मिलकर ऋ बनता है। ऋ+ ऋ मिलकर ऋ बनता है। लु+ल मिलकर ल बनता है। लु+ल मिलकर ल बनता है। (देखें पृष्ठ ३ नियम १)
संयुक्त संधिस्वर-विभिन्न स्वरों के मेल से जो स्वर बनता है उसे संयुक्त संधिस्वर कहते हैं । जैसे