SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ ४३ : तद्धित ६ (शेषाधिकार २) शब्दसंग्रह खुरली (शस्त्राभ्यास का स्थान)। प्रगंडरः (किले की दीवार) । डमरः (गदर)। सज्जम् (शस्त्र आदि से युक्त)। आवेष्टकः (घेरा)। यानम् (चढाई)। पताका (झंडा)। खूरिका (परेड करने का मैदान) । उपरक्षणम् (पहरा) । द्वैधम् (फूट डलवाना)। डिबः (बिना हथियारों का युद्ध) । विद्रवः (भागना) । विद्रावणम् (भगाना) । प्रचक्रम् (मार्च करना, प्रस्थित सैन्य) । व्यूहः (मोर्चा) । आसारः (शत्रु को घेर लेना, आक्रमण) । संधिः (सुलह) । धातु—ष्टुन्क्-स्तुतौ (स्तौति, स्तुते) स्तुति करना। बॅन्क्व्यक्तायां वाचि (ब्रवीति, ब्रूते) बोलना। द्विषंन्क्-अप्रीती (द्वेष्टि, द्विष्टे)। __ष्टु, ब्रू और द्विष् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ३०,३१,६१)। नियम २८५-(क्रतुनक्षत्रसंध्यादेरण ६।४।८६) ऋतुवाची, नक्षत्रवाची, संध्यादि शब्दों से शेष अर्थ में अण् प्रत्यय होता है । ग्रीष्मे भवः ग्रैष्मः । वासन्तः, शैशिरः । पुष्ये भवः पौषः । आश्विनः, रौहिणः । सान्ध्यः, सान्धिवेलः, आमावास्यः, शाश्वतः । नियम २८६- (तिष्यपुष्ययोर्नक्षत्रेणि ८।४।७६) तिष्य, पुष्य के य का लोप हो जाता है अण् प्रत्यय परे होने पर । तिष्ये भवः तैषः । पौषः । नियम २८७-(तत्र जाते ७।१।१) सप्तम्यन्त नाम से जात (स्वयं पैदा होना) अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है। कुछ शब्दों से अनेक अर्थों में एक ही प्रत्यय होता है। यथाविहित का अर्थ है उन शब्दों से वे ही प्रत्यय होंगे और वही रूप बनेगा। पाठ ४६ देखें । मथुरायां जातः माथुरः । आग्नेयः, कालेयः, स्त्रैणः, पौंस्नः, राष्ट्रियः, ग्रामीणः, ग्राम्यः । नियम २८८-(कृतलब्धक्रीतसंभूतेषु ७।१।१७) सप्तम्यन्त नाम से कृत, लब्ध, क्रीत, संभूत इन अर्थों में यथाविहित प्रत्यय होता है। मथुरायां कृतः, लब्धः, क्रीतः, संभूतः वा माथुरः । नियम २८६- (कुशले ७।१।१८) सप्तम्यन्त नाम से कुशल अर्थ में अण, इय आदि प्रत्यय होते हैं । मथुरायां कुशलः माथुरः। नियम २६०--(भवे ७।१।३१) सप्तम्यन्त नाम से भव (रहना)
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy