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पाठ ३७ : उपसर्ग
.शब्दसंग्रह अन्त्यज: (शूद्र) । चर्मकारः (चमार) । संमार्जकः (भंगी)। शाकुनिकः (बहेलिया)। अजाजीवः (गडरिया)। मायाकारः (जादूगर) । शौण्डिकः (सुराविक्रेता)। कर्मकरः (नौकर) । भारवाहः (कुली)। मालाकारः (माली)। कुलालः (कुम्हार)। लेपकः (पुताईवाला)। प्रेष्यः (चपरासी) वैतनिकः (वेतन पर नियुक्त नौकर)। तस्करः (चोर) । पाटच्चरः (डाकू) । ग्रन्थिभेदकः (गिरहकट)। मृगयुः (शिकारी)। मृगया (शिकार) । वागुरा (जाल)।
- उपसर्ग •. प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर् दुस्, दुर्, वि, आङ्, नि, अधि, प्रति, परि, उप, अति, अपि, अभि, सु, उद्-ये शब्द (चादयो निपातः १।१।४०) सूत्र से निपात हैं। (प्रादिरुपसर्गः क्रियायोगे १।१।४१) सूत्र से ये जब क्रिया के साथ प्रयुक्त होते हैं तब इनकी उपसर्ग संज्ञा होती है । (ऊर्याद्यनुकरणोपसर्गविडाचो गति र्धातोः प्राक् च ३३१११) इस सूत्र से उपसर्ग की गति संज्ञा भी होती है और धातु से पहले इनका प्रयोग होता है। (निपातस्वरादयोऽव्ययम् १।११४८) इस सूत्र से उपसर्गों की अव्यय संज्ञा होती है। अव्यय होने से इनके रूप में किसी भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता। दो उपसर्गों की या धातु के रूप के साथ उपसर्ग की संधि हो सकती है।
प्र आदि उपसर्ग २२ हैं । धा और कृ धातु के योग में श्रत् शब्द की उपसर्ग संज्ञा होती है । अन्तर् शब्द की भी ङ और कि प्रत्यय के योग में तथा न को ण करने लिए उपसर्ग संज्ञा होती है । (श्रद्धा कृनोः १।१।४२, अन्तर्णत्वङकिषु १।१।४३)। धातु से पहले उपसर्ग लगाने से कहीं पर धातु का अर्थ बदल जाता है, कहीं पर विपरीत अर्थ हो जाता है और कहीं पर धातु के अर्थ की ही विशेषता होती है । प्र आदि उपसर्ग सभी धातुओं के साथ नहीं लगते। एक धातु के साथ भी सभी उपसर्ग नहीं लगते। किसी धातु के साथ एक दो उपसर्ग लगते हैं तो किसी के साथ दो से भी अधिक दस-पन्द्रह उपसर्ग लगते हैं । एक धातु के एक साथ एक, दो, तीन, चार उपसर्ग भी देखे जाते हैं । हन्हरणे का अर्थ है हरना। प्रहरति = प्रहार करना । व्यवहरति - व्यवहार करना अपहरति - अपहरण करना निहरति =निहार करना
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