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वाक्यरचना बोध
एकवचन और नपुंसकलिंग होता है । जैसे पाणी च पादौ च–पाणिपादम् । अश्वश्च महिषश्च-अश्वमहिषम् ।।
नियम द्वन्द्व समास में प्राग् निपात के लिए निम्नलिखित नियमों को ध्यान से पढे -
नियम १९५–(क)-(द्वन्द्वे लक्ष्वक्षरमेकम् ३।१।१६८)-जो शब्द लघु अक्षर वाला हो उसका प्राग् निपात होता है । यदि लघु अक्षर के अनेक पद हों तो उनका क्रमशः प्राग् निपात होता है। जैसे-तिलमाषौ, घटशंखपटाः, प्रटशंखघटाः।
ख-(अल्पस्वरम् ३।१।१७६)-अल्प स्वर वाले पद का प्राग् निपात होता है । जैसे-धवखदिरो, वागर्थो ।
ग-(इदुदन्तमसखि ३।१।१७०)—सखि शब्द को छोडकर इकारांत, उकारात शब्द का प्री निपीत होताही पर्षिाकालि पलपि में हो तो उनका इच्छानुसार प्राग् निपात कर सकते हैं। जैसे—पतिसुतो, वायुतोयं, पतिवसू, वसुपती।
घ-(न जायापत्यादिषु ३।१।१७१)-जाया, भार्या, पुत्र, स्वसृ इनके आगे पति शब्द हो तो इकारांत होने पर भी उसका प्राग् निपात नहीं होता। जैसे-जायापती, भार्यापती, पुत्रपती, स्वसपती।
___ - (गुणवृद्धयादिषुवा ३।१।१७२) इन शब्दों का प्राग निपात विकल्प से होता है। जैसे—गुणवृद्धी, वृद्धिगुणो, सर्पिमधुनी, मधुसर्पिषी, दीर्घलघू, लघुदीघौ, चंद्रराहू, राहुचन्द्रो। - च-(स्वराद्य दन्तम् ३।१।१७३)-स्वर आदि और अकार अन्त वाले शब्दों का प्राग निपात होता है, जैसे-अश्वखरम्, अश्वखरौ। समाहारद्वन्द्वसमास में 'खर' में नपुंसकलिंग और एकवचन हुआ है और इतरेतर द्वन्द्व करने से 'खर' शब्द में द्विवचन हुआ है।
छ- (न शूद्रार्यादिषु ३।१।१७४)-शूद्रायौं, अवन्तीअश्मको, विश्वसेनार्जुनी, विषयेन्द्रियाणि, राजाश्वौ इनमें स्वर आदि और अकार अंत में होने पर भी प्राग निपात नहीं होता है।
ज-(धर्मार्थादिषु ३।१।१७५) धर्मायौं, अर्थधर्मी, कामथौं, अर्थकामी, mer अर्थशब्दो. आद्यन्ती. अन्तादी, अग्नीन्द्रो, इन्द्राग्नी, चंद्राको, अर्कचंद्री; अश्वत्थकपित्थो, कपित्थाश्वो इनम स्वर आद आर अकारान्त हान पर भी प्राग् निपात विकल्प से होता है।
(झ) (समीरणाग्न्यादिषु वा ३।१।१७८)--- समीरणाग्नी, अग्निसमीरगौ, आदित्य चंद्रौ, चंद्रादित्यौ, पाणिनीयरीढीयाः, रौढियपाणिनीयाः इनमें अल्प स्वर होने पर प्राग् निपात विकल्प से होता है ।