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समास ४ ( द्वन्द्वसमास )
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- ( अर्चितम् ३|१|१७६ ) - द्वन्द्वसमास में जो पूज्य होता है उसका प्राग् निपात होता है । जैसे - निर्ग्रन्थगृहस्थी, देवदेव्यो, मातापितरौ वधूवरी । नियम १९६ ( क ) - ( मासर्तु भ्रातृनक्षत्राण्यानुपूर्व्येण ३|१|१८२ ) - द्वंद्व समास में मासवाची, ऋतुवाची, भ्रातृवाची और नक्षत्रवाची शब्दों को आनुपूर्व्य ( क्रम से ) प्राग् निपात होता है । जैसे - फाल्गुन चैत्री, वैशाखज्येष्ठी, हेमन्त शिशिरी, हेमन्त शिशिरवसंताः, युधिष्ठिरार्जुनो, कृत्तिकारोहिण्यो, अश्विनी - भरणीकृत्तिकाः । वसन्त और ग्रीष्म शब्द को विकल्प से प्राग् निपात होता है । वसन्तग्रीष्मी, ग्रीष्मवसन्तौ ।
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ख - (न पाण्डुधृतराष्ट्रादिषु ३|१|१८४) पाण्डुधृतराष्ट्रो, विष्णुवासवो भ्रातृवाची शब्द होने पर भी इनका आनुपूर्वी से प्राग् निपात नहीं होता ।
ग -- ( भीमसेनार्जुनादिषु वा ३|१|१८५ ) - भीमसेनश्च अर्जुनश्च - • भीमसेनार्जुनो, अर्जुन भीमसेनौ । इसमें प्राग् निपात विकल्प से होता है ।
घ - ( न पुष्यपुनर्वस्वादिषु ३ । १ । १८६ ) – पुष्यपुनर्वसू, तिष्यपुनर्वसू मघाश्लेषे, आर्द्रामृगशिरसी नक्षत्रवाची इन शब्दों का आनुपूर्वी से प्राग् निपात नहीं होता है ।
नियम १६७- (नित्यवैरिणाम् ३ । १ । १५२) जिनका जातिनिबद्ध वैर हो उनका द्वंद्वसमास में समाहार ( एकत्व) समास होता है । जैसे - अहिन - कुलम्, मार्जारमूषकम्, अश्वमहिषम् ।
नियम १९८ - ( विरोधिनामद्रव्याणाम् ३ |१| १६० ) – परस्पर विरोधि शब्द यदि द्रव्य के विशेषण न हो तो उनका द्वंद्व समास में समाहार विकल्प से होता है । जैसे - सुखदु:खम्, सुखदु:खे, लाभालाभम्, लाभालाभे, संयोगविभागम् संयोगविभागो ।
नियम १६६ - ( फलानां जाती ३।१।१५७ ) यदि फलवाची शब्द बहु वचन के द्योतक हों तो उनका द्वंद्वसमास में ( एकत्व) समास होता है । जैसे बदराणि च आमलानि बदरामलकम् ।
नियम २००- ( वा वृक्षतृणधान्यमृगशकुनीनाम् ३|१|१५८) वृक्ष, तृण, धान्य, मृग, शकुनि इनका द्वंद्वसमास में एकत्व विकल्प से होता है । (वृक्ष) | — प्लक्षाश्च न्यग्रोधाश्च = प्लक्षन्यग्रोधं, प्लक्षन्यग्रोधाः । ( तृण ) - कुशकाशं, कुशकाशा: ( धान्य ) - व्रीहियवं व्रीहियवा: । ( मृग ) – रुरुपृषतं रुरुपृषता: । ( शकुनि ) - शुकबक, शुकबका: ।
नियम २०१ - ( पशुव्यञ्जवानाम् ३ | १|१५९ ) - पशुवाची और व्यञ्जनवाची शब्दों से द्वंद्वसमास में एकत्व विकल्प से होता है । जैसे - गौश्च महिषश्च = गोमहिषं, गोमहिषी । व्यञ्जन — दधिघृतं दधिघृते । शाकसूपं - शाकसूपौ ।