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समास ( २ ) तत्पुरुष
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द्वादशाङ्गी । यह एक प्रकार से कर्मधारय का ही उपभेद है । क्योंकि संख्या - वाची शब्द विशेषण ही होते हैं । द्विगुसमास प्राय: समुदायबोधक होता है । नियम १७७ - ( नञत् ) अन् स्वरे ३।२।१७, १०१) नव् तत्पुरुष में उत्तरपद हस आदि वाला हो तो पूर्वपद में 'न' का 'अ' हो जाता है । उत्तरपद स्वर आदि वाला हो तो 'न' को 'अन्' आदेश हो जाता है । जैसे- -न हिंसा == अहिंसा । न सत्यं असत्यम् । न अश्वः अनश्वः । न अद्यतन: तत्पुरुषसमास में निम्नलिखित शब्दों से ट ( अ ) प्रत्यय
और ट होने से वे शब्द अकारान्त बन जाते हैं
अनद्यतनः । हो जाता है
क - ( सखेष्ट: ८।३।६ ) - सखि शब्द अन्त वालों से । जैसे- राज
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सखः, महासखः ।
ख - ( राज्ञोऽस्त्रियाम् ८।३।७ ) - स्त्रीलिंग में छोडकर राजन् शब्द अंत में हो तो । जैसे - देवराजः महाराजः ।
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ग-
- ( अह्नः ८३८ ) - अहन् शब्द अन्त में हो तो । जैसे - परमाहः,
उत्तमाहः ।
घ - (संख्यातादऽह्नश्च वा ८३ ) - पूर्वपद में संख्यात शब्द हो तो अहन् को अह्न आदेश विकल्प से हो जाता है । जैसे— संख्यातमहः = संख्याताह्नः, संख्याताहः ।
ङ - -(सर्वाशसंख्यात पुण्यवर्षा दीर्घाच्च रात्रे : ८।३।५५ ) सर्व शब्द, अंशवाची (एकदेशवाची) शब्द, संख्यावाची और अव्यय से परे अहन् शब्द से प्रत्यय हो जाता है और अहन् को अह्न आदेश हो जाता है । जैसे— सर्वमहः = सर्वाः । ( अंशवाची ) अपराह्नः मध्याह्नः, सायाह्नः । ( संख्यावाची - ) द्वयोरह्वोर्भवः -- द्वयह्नः । (अव्यय - ) अत्यह्नी कथा, निरही वेला ।
च - (ग्रामकौटात् तक्ष्णः ८ । ३ । १३ ) - - ग्राम और कोट शब्द से परे तक्षन् शब्द अन्त में हो तो । जैसे - ग्रामतक्ष: (गांव का बढई ), कोटतक्ष: ( कटी शाला, तस्यां भवः कौटः । वह बढई जो अपनी दूकान में स्वतंत्र काम करता हो, किसी से प्रतिबद्ध न हो
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( गोष्ठाः शुनः ८।३।१४ ) – गोष्ठ और अति से परे श्वन् शब्द सेट प्रत्यय हो जाता है । गोष्ठे श्वा = गोष्ठश्व: ( गोष्ठी में अधिक बोलने वाला), अतिक्रांत: श्वानं - अतिश्वो वराहः (तेज दौड़ने वाला सूअर ) । - ( प्राणिन उपमानात् ८।३।१५ ) - प्राणिवाची उपमान से परे श्वन् शब्द अंत में हो तो ट प्रत्यय हो जाता है । व्याघ्रः स चासो श्वा चव्याघ्रश्व: ( बाघ की तरह कुत्ता ) ।
ज -
झ -
- ( मृगपूर्वोत्तराच्च सक्थनः ८ | ३ | १७ ) – मृग, पूर्व, उत्तर और उपमानवाची शब्दों से परे सक्थि शब्द से । मृगस्य सविथ - मृगसक्थम् ( ( मृग की हड्डी) । पूर्वं सक्थि = पूर्वसक्थम्, सक्थनः पूर्वं पूर्वंसक्थम् । उत्तरं सक्थम् —