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पाठ २७ : पूर्वकालिक क्रिया ( क्त्वा प्रत्यय)
शब्दसंग्रह ( क्त्वा प्रत्यय के रूप )
लिखित्वा ( लिखकर ) । हित्वा त्यक्त्वा ( छोडकर ) । स्मृत्वा
( यादकर ) । पठित्वा ( पढकर ) । ( कहकर ) | मारयित्वा ( मारकर ) । वन्दित्वा ( वन्दन कर) । गत्वा, यात्वा शयित्वा सुप्त्वा ( सोकर ) । नर्तित्वा मत्वा ( मानकर ) । श्रुत्वा ( सुनकर ) । ( ग्रहण कर ) । नीत्वा ( लेकर, पाकर ) । ( ठहरकर ) । ( स्नानकर ) । लब्ध्वा ( प्राप्तकर ) । श्वसित्वा ( श्वास लेकर ) । त्रात्वा ( सूंघकर ) । दत्वा ( देकर ) । भीत्वा ( डरकर ) । विदित्वा (जानकर ) । जग्ध्वा ( खाकर ) । स्तुत्वा ( स्तुति कर ) । दुग्ध्वा (दुहकर ) । उषित्वा ( रहकर ) । लूत्वा ( काटकर ) । चोरयित्वा ( चुराकर ) । चित्वा (चुनकर ) । नशित्वा नष्ट्वा ( नष्टकर ) । कृत्वा ( करके ) । हत्वा ( मारकर ) ।
स्नात्वा
ज्ञात्वा ( जानकर )
,
।
जित्वा ( जीतकर ) । रोदित्वा ( रोकर ) ।
पीत्वा ( पीकर ) ( जाकर ) । ( नाचकर ) । ( जानकर ) । पृष्ट्वा ( पूछकर ) । गृहीत्वा
(
बुध्वा (
नत्वा ( नमनकर) । स्थित्वा
। कथयित्वा उक्त्वा
धातु — दहं - भस्मीकरणे ( दहति ) जलाना ।
युष्मद् शब्द के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट १ संख्या ४२ ) । दह धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ६६ ) । नोटट - अन्य धातुओं के क्त्वा, यप् प्रत्यय के रूप परिशिष्ट ४ में देखें ।
क्त्वा प्रत्यय
जहाँ पूर्वकाल की क्रिया के बाद उत्तर काल की क्रिया का निर्देश किया जाता है वहाँ संस्कृत में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है । जैसे - अहं पुस्तकं पठित्वा उत्तरं दास्ये । इस वाक्य में दो क्रियाएँ हैं - पढ़ना और उत्तर देना । उत्तर देने की क्रिया पढने के बाद में होगी इसलिए वह उससे पूर्वकालीन है । क्त्वा प्रत्यय सब धातुओं से होता है । कुछ धातुओं से विकल्प में दूसरा प्रत्यय भी होता है । कई धातुओं को क्त्वा से पहले इट् होता है उसे सेट् क्त्वा कहते हैं । कई धातुओं को गुण होता है । सकर्मक धातुओं को क्त्वा प्रत्यय होने से उसके योग में कर्म आता है । क्त्वा प्रत्यय के रूप बनाने का सरल उपाय यह है कि क्त प्रत्यय के रूप में अंतिम त को निकाल कर त्वा लगा दें । धातु के पहले उपसर्ग होने से क्त्वा के स्थान पर