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निमित्तार्थ क्रिया
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छात्राः उपाध्यायं परिचरन्ति । वैशालीमधिकर्तुमनाः कोणिक: चेटकमाचऋाम।
___-सेट् धातु से इट् (इ) आता है और अनिट् धातुओं से इट नहीं आता । इट् तुम् प्रत्यय से पहले आता है। जैसे ---पठ -- पठितुम् (पढ़ने के लिए) ।
ख-(आत्नध्यक्ष राणाम् ४।२।१०१) सन्ध्यक्षर अंत वाली धातुओं के अंत में सन्ध्यक्षर के स्थान पर 'आ' हो जाता है। जैसे—गै गातुम् (गाने के लिए)।
ग-(नामि गुणोऽक्ङिति) उपधायाः लघोः ४।२।१,४) नामि स्वर अंतबाली धातुओं को तथा हसान्त धातुओं की उपधा को गुण हो जाता है । जैसे---
जि (जेतुम् जीतने के लिए । णी (नेतुम् ) ले जाने के लिए। श्रु (श्रोतम् ) सुनने के लए। कृ (कर्तुम् ) करने के लिए। रुद् (रोदितुम्) रोने के लिए। ष्टु स्तोतम्) स्तुति करने के लिए। लिख (लेखितुम्) लिखने के लिए।
घ--- (वजो कगौ २।१।११६) अनिट् धातुओं के अंत में स्थित च को क और ज को स होकर क हो जाता है। जैसे--पच् (पक्तम् ) पकाने के लिए । भुज (भोक्तम् ) खाने के लिए।
-- (खसे चपा झथानाम् ११३।४०), (झसा जबा: २।१।१०८) धातु के अं नाम द् को त्, ग् को द् और भ् को ब हो जाता है। जैसे छिद् (छेत्तुम् ) काटने के लिए । रुध (रोद्धम् ) रोकने के लिए । लभ् (लब्धुम् ) पाने के लिए।
च-- (शराज भ्राज्यज सृजमृध्रस्वश्चपरिव्राजां षः २।१।११७) श अन्तवाली धातुएं था राज्, भ्राज्, यज्, सृज, मृज् . भ्रस्ज, ब्रश्च् इन धातुओं के अंतिम वर्ण को प् हो जाता है और तुम् के तु को टु हो जाता है । जैसे—प्रविश् (प्रवेष्टम् ) प्रवेश करने के लिए। राज् ( राजि तुम्) भ्राज् (भ्राजितुम्) चमकने के लिए । यज् (यष्टुम् ) यज्ञ करने के लिए। मृञ् (स्रष्टुम् ) सर्जन करने के लिए। मृज् (म्रष्टुम् ) साफ करने के लिए। भ्रस्ज् (भ्रष्टुम् भाम् ) भुनने के लिए।
छ-(म्नां जपे नमः सवर्णोऽप्रदान्ते ११३।३४) मकार को नकार हो जाता है । जैसे--म् (गन्तुम् ) जाने के लिए। रम् (रन्तुम् ) रमण करने के लिए।
प्रयोगवाक्य चेत् त्वं चिन ! बुद्धिकलापं लब्धं, आपदमपाकर्तु, पथि विहर्तु, कीर्ति प्राप्तुं, साधुतां विधुवितुं, धर्म समासेवितुं, पापविपाकं रोर्बु, स्वर्गापवर्गश्रियमाकलयितुं समीहसे तदा गुणवतां संगं अङ्गीकुरु । किमहं मध्याह्न अवर