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(अजावि) आज तक (मग्गं ण जादं) मग्न नहीं हुआ।
अर्थ-हे जिनेन्द्र ! सुंदर स्त्रियों के कटाक्षरूपी बाणों से बिंधा हुआ यह चित्त जिस तरह उसमें ही निमग्न हो जाता है, उस तरह आपके दर्शन में आज तक मग्न नहीं हुआ।
.. अविशेषता में भी अभिमान ण ईसरत्तं विभुदा ण मझं, ण कंचणं दिव्व-तणू य देव! ण णिम्मलण्णाण-बलप्पदिट्ठा, तहा वि माणेण वसीकिदो हं॥3॥
अन्वयार्थ-(देव!) हे देव! (मज्झं) मुझमें (ण ईसरत्तं) न ईश्वरत्व है (ण विभुदा) न विभुता है [मेरे पास] (ण कंचणं) न कंचन है (ण दिव्व देहो) न दिव्य देह है (य) और (ण णिम्मलण्णाण-बलप्पदिट्ठा) न निर्मल ज्ञान, बल या प्रतिष्ठा है (तहा वि) फिर भी (हं) मैं (माणेण वसीकिदो) मान से वशीकृत हूँ।
अर्थ-हे देव! मेरे पास न ऐश्वर्य है, न विभुता है, न स्वर्ण है, न सुंदर शरीर है, न निर्मलज्ञान, उत्तम बल या श्रेष्ठ प्रतिष्ठा ही है, फिर भी मैं मान कषाय के वशीभूत हूँ।
यत्न की विपरीतता भोगस्स जदणं सदा मया य, किदं ण जोगस्स जदणं जिणेस। धणस्स जदणं सदा किदं पि, धम्मस्स जदणं ण किदं कदा वि14॥
अन्वयार्थ-(जिणेस) हे जिनेश! (मया) मेरे द्वारा (सदा) सदा (भोगस्स जदणं) भोग का यत्न (किदं) किया गया (य) किंतु (जोगस्स जदणं) योग का यत्न (ण) नहीं [किया गया] (धणस्स जदणं सदा किदो वि) धन का यत्न सदा करते हुए भी (धम्मस्स जदणं) धर्म का यत्न (कदा वि) कभी भी (ण किदं) नहीं किया।
__ अर्थ-हे जिनेश! मेरे द्वारा सदा भोग का यत्न किया किंतु योग का यत्न नहीं किया गया। धन का यत्न करते हुए भी धर्म का यत्न (पुरुषार्थ) नहीं किया गया।
श्रेष्ठ कार्यों में भी यत्न नहीं किया धिदं मए णाध! ण साहवित्तं, किदं मया णावि परोवयारं। धम्मामिदं णो य पीदं कुधीए, किदंण तित्थुद्धरणादि-कजं ॥15॥
अन्वयार्थ-(णाध!) हे नाथ! (मए) मेरे द्वारा (साहुवित्तं) श्रेष्ठ चारित्र (ण) नहीं(धिदं) धारण किया गया (णावि) न ही (परोवयारं किदं) परोपकार किया गया (मया कुधीए) मुझ कुबुद्धि के द्वारा (णो धम्मामिदं पीदं) न धर्मामृत पिया गया (य) और (ण तित्थुद्धरणादि कजं) न तीर्थोद्धार [जीर्णोद्धार] आदि कार्य (किदं) किया
भावालोयणा :: 327