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वे भाई बहिनें मातृत्व स्नेह युक्त तैयार होकर शीघ्र अग्रणी हुए जिनगृह में जाते हैं, वे वहाँ नमस्कार मन्त्र को बोलते हैं । प्रभु पतित की भक्ति भी बोलते और अक्षत पुंज चढ़ाते हैं ।
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संझासु पाढ पढणं जिणधम्म साले गच्छेति ते जयजिणिंद पणम्म भूदा । भासेंति पाद पउमे गुरु णाण हेदुं सम्मं च सम्मदि सुदं सुद पाढ पाढे ॥ 29 ॥
जब वे सभी संध्या में जिनधर्म की पाठशाला में पाठ पढ़ने जाते हैं, तब वे प्रणम्य भूत गुरुचरणों को गुरुज्ञान हेतु जय जिनेन्द्र बोलते हैं । सो ठीक है सम्यग्ज्ञान, श्रुत से सन्मति श्रुत पाठ के पढ़ने के लिए आदर आवश्यक है ।
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पाढं पढंत सयला बहु णम्म जादा
बाला कुमारि जणणी सह कज्ज मुत्तं ।
एंति किंचि ववहारि सुसिक्ख सुत्तं
भाउ त्तु आपण विहिं अणुसिक्खएंति ॥30॥
वे सभी नम्रीभूत पाठ पढ़ते, बालाएँ छोटी कन्याएँ जननी के साथ कार्य मुक्ताओं की ओर अग्रसर होती हैं, कुछ व्यावहारिक शिक्षा सूत्र की ओर अग्रसर होती हैं। भाई आपणविधि ( दुकानदारी) को सीखते हैं।
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पुत्ती भाणु-सुग बिट्ट सुदा गुणी हु काले विवाह-परिणेज्ज कुमारि भूदा ।
सव्वा लहु थिकणगा सुउमाल माला लाला पियार मरणे अदि खिण्ण भूदा ॥31॥
भानुमति, शुकमति, बिट्टो सभी गुणी थीं वे विवाहित हुई कुमार काल में । सबसे छोटी कनकमाला अति सुकुमार पितुश्री की प्यारी प्यारे लाल की मृत्यु होने पर खिन्न हुई।
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ही गुणी हु अदिवच्छल भाव मादू गेहस्स कज्ज कुणमाण इणं विजोगं ।
62 :: सम्मदि सम्भवो