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25 दुक्खं वियोग-परिसुण्ण-इमा जया वि अग्गे ण दंसदि समागद-भिक्खु-भासी। सच्चं च होहिदि वयं गिह कज्ज रत्ता
हत्थि त्थि रेह परिदंसदि सुद्ध सीलं॥25॥ यह जया वियोग से रहित उस समय हो गयी जब समागत भिक्षु सामने नहीं दिखता है। उसका वचन सत्य होगा क्योंकि इस गृहकार्य में रत गृहिणी के लिए कहा था कि इसकी रेखाओं में हस्ति रेखा (गजरेखा) है, जो शुद्ध भाव एवं शील को दर्शाती है। केलीए सहेव सिक्खा
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मिट्टीअकीलण सदा हु सुहावणा वि कीलेंति बाल कुमरी वि कुमार बाला। हत्थेहि णिम्मिद करी लहु-गुड्डि गुड्डा
णंदेति ते तिय चदुक्क वए रजिल्ला ॥26॥ तीन चार वर्ष के बालक बालिकाएँ रज से सने हुए जब मिट्टी में क्रीड़ा करते हैं, तब वे सुहावने लगते हैं। वे अपने हाथों से हाथी, लघु गुड्डा गुड़िया बनाते हैं तब वे अति आनंदित होते हैं।
27 देवा कुमार सुउमाल इमे पदंसे ओमो वि सव्व-भगिणी सह मिट्टिकीलं। कुव्वेति ते तध वि देह इमो वि मिट्टी
जाणेति णो स हु विणस्सदि कील रूवे॥27॥ देवों के कुमार इन सुकुमाल बालकों की ओर दृष्टि करते हैं। उसमें ओम अपने भाईयों और बहनों के साथ मिट्टी से खेलते हैं। वे मिट्टी जानते हैं, पर यह देह भी क्रीडनांकन (खिलौनों की तरह) नष्ट हो जाती, ऐसा नहीं समझते हैं।
28 अग्गे हु अग्ग-सयला भगिणी वि भाऊ मादुत्त णेहगद भत्ति सुसज्ज भूदा। गच्छेति ते जिणगिहे णवकार मंतं बोल्लेति भत्ति पहु अक्खद पुंज पुण्णा॥28॥
सम्मदि सम्भवो :: 61