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21 तिण्णग्ग विंदुजल भत्ति पडेज्ज भूए आऊ विलास विणिपादुग सीलहोज्जा। अग्गेसरो वि जमराय इधेव चिट्ठे
को साहु दिव्व पुरिसो ण हु जाणदे सो॥21॥ जैसे तृण के अग्रमान की जल बिंदुएँ शीघ्र नीचे गिर जाती हैं, वैसे ही आयु का विलास शीघ्र पतन के सम्मुख हो जाता है। इधर यमराज भी साधु या दिव्य पुरुष नहीं जानता है वह तो यम में अग्रणी रहता है।
22 अक्खम्म आउ गदिसील समो हि सेण्णा णं एस बाल सिसुणो ण हु पस्सएज्जा। भूए स पेसिद-इमाण जणाण दुक्खं
दाएज्ज अम्हि मह पाव-पमाण भूदा ॥22॥ वृद्धावस्था गतिशील सेना है, पर बाल शिशु के लिए वह यमराज नहीं देख पाया। भू पर भेजा, पर इन लोगों के लिए दुःख दे गया सो ठीक हैं इसमें मेरे पापकर्म प्रमाण भूत हैं।
23 पाणीण अप्प-सुह विज्जुसमा हु अत्थि भूइट्ठ दुक्ख-विसयाण कुणेहि तोसो। धीरो हवेदि तणयो कुण हत्थ-उच्चे
णं बोहएज्जदि दुहंण कुणेहि मादं ॥23॥ प्राणियों के लिए इस संसार में सुख विद्युत (आकाश विद्युत) की तरह हैं। विषयों के दुःख हैं इसलिए संतोष रखें। मानो धीर तनय हस्त ऊँचे करता हुआ मातुश्री के लिए सम्बोधित कर रहा कि दुःख मत करो।
24 भिक्खू इगो हु सम इच्छय माणभूदो वासं इगं च सिसु-दसण-कुव्व-णंदो। एसो मणीसि-तवसी कर-भाग-रेहा
भासेज्जदे हु जयमाल जयं णएदि॥24॥ एक भिक्षु भिक्षा की इच्छा वाला एक वर्ष के इस शिशु के दर्शन कर आनंदित होता है। वह कहता-यह मनीषी है, तपस्वी होगा ऐसा कर भाग की रेखाएँ कह रही हैं तब जयमाला अपने आप जय से (अति हर्ष) धारण करती है। 60 :: सम्मदि सम्भवो