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राजस्थान प्रान्त में जैन शिक्षण के तीन हजार से अधिक केन्द्र हैं। उनमें तीन सौ से अधिक इसे पढ़ाने के लिए तैयार हो सकते तो आज प्राकृत का नाम संस्कृत की तरह ही मान्य होता।
आचार्य आदिसागर अंकलीकर के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्यश्री सुनीलसागरजी के चरणों में नत हूँ कि वे अपनी आचार्य परम्परा के साथ प्राकृत को स्वयं लिखकर महत्त्व दे रहे हैं। अनेकानेक आचार्य इस ओर अग्रसर हो रहे हैं। यही प्रयत्न प्राकृत को गति देगा। इसी दिशा का पुरुषार्थ है यह तपस्वी सम्राट आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज का जीवन चरित्र ‘सम्मदि-सम्भवो'।
-डॉ. उदयचन्द्र जैन 08764341728 (M)
29 पार्श्वनाथ कॉलोनी सवीना, उदयपुर (राजस्थान)
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