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________________ आगमधर सुरि द्वितीय प्रहर के प्रारंभ में अंतिमयात्रा का आरंभ हुआ । हजारों का मानव समूह उमड़ा हुआ था । 'जय जय नंदा जय जय भद्दा' की ध्वनिपूर्वक महाशिबिका उठाई गई वाद्ययन्त्रों से शोक के सुर निकल रहे थे। सूरत के राजमार्गों से है। कर अंतिमयात्रा अग्नि संस्कार के स्थान पर आ पहुँची । १७९ आगमस दिर से इन महात्मा श्री के महापुण्य से नगर के बीच इक्यासी हाथ दूर अग्नि संस्कार का स्थल था, परन्तु सरकारी नियम ऐसा है कि किसी मानव का अग्नि संस्कार नगर के बीच में नहीं किया जा सकता । फिर भी ये महात्मा मानव नहीं अपितु महामानव थे, अतः यह नियम गौण हो गया । सरकारी अफसर ने आगममंदिर के पास की भूमि का निरीक्षण किया । आस पास रहनेवाले जैनेतरे से भी पूछा गया कि "इन महात्माश्री की स्थूल देह का इस स्थान पर अग्नि संस्कार किया जाय तो आपको कोई उज्र तो नहीं है ? जैनेतर भाइयों ने बहुत आनंदपूर्वक व्यक्त किया कि 'ये महात्मा जैनों के हैं उसी तरह हमारे भी हैं। हमें कोई ऐतराज़ नहीं है । तत्पश्चात् सरकारी अधिकारी ने आगमोद्धारक संस्था की मिलकियत की जगह में अग्नि संस्कार करने के लिए विशिष्ट अधिकार सहित हुकमनामा लिख दिया । फलतः नगर के मध्य में दाह क्रिया हुई । धर्मपुत्र के हाथों अग्निदाह शहर के राजपथ पर घूम कर अंतिम यात्रा अग्नि संस्कार के स्थान पर आ गई । इसी स्थान पर अग्नि संस्कार का चढ़ावा बोला गया । क्षत्रिय कुल भूषण जैनरत्न श्री जयतिभाई चढ़ावा लिया | वखारिया ने
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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