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________________ आगमधरसूरि ये समाचार सभी स्थानों को नभोवाणी तथा शीघ्रवेगी (रेडिये।, तार, टेलिफोन) साधनों से भेजे गये । जहाँ ये समाचार पहुँचते वहाँ आघात और शोक छा जाता । श्रावक वर्ग तो रेलगाड़ी आदि साधनां से पूज्यश्री के अन्तिम दर्शनों के लिए सूरत के आंगन में उमड़ने लगा ! १७८ . समाचार से सूरत की गली गली में शोकमय वातावरण देख कर सूर्य भी उदास हो गया । पूज्यश्री आगमाद्धारकजी के निर्वाण के वह भी अत्यंत दु:खी हुआ, और यह भयं कर सकने के कारण अस्ताचल की ओर चल पड़ा । अन्तिम यात्रा आघात सहन न कर वैशाख कृष्णा (उत्तर में ज्येष्ठ कृष्णा ) ६ के दिन दूसरे पहर के प्रारंभ में अंतिम यात्रा निकलने वाली थी। शाम को शहर के प्रसिद्ध स्थपतियों को बुलाया गया था। उनसे कहा गया था कि आज रात भर के समय में इस महात्मा के योग्य एक छोटे मंदिर के समान विशाल और शोभामय 'महाशिबिका' बनानी है । स्थपतिगण तुरन्त ही भक्ति पूर्वक कार्य में लग गये। सुबह तक तो सात हाथ ऊँची, देव कुलिका की स्मृति करानेवाली कलामय महाशिबिका तैयार हो गई ऐसा दिखाई पड़ता था मानो इन्द्र महाराज की आज्ञा से वश्रमणदेवने पूज्यश्रीकी भक्ति के लिए यह 'महाशिबिका' भेज दी है । आज के प्रथम प्रहर तक मे हजारों जैन- जैनेतर दर्शनार्थी अंतिम दर्शन के लिए आ गये । अन्य शहरों और गाँवों से हजार से अधिक भाग्यवान् अन्तिमयात्रा में भाग लेने आये थे ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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