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________________ आगमधरसूरि १७७ अनुमति ले रहे हैं। पूज्यश्री पुनः नेत्र मूंद कर ध्यानारूढ हुए और उनका अंगूठा अंगुलियों के पोरों पर फिरने लगा । अमृत घटिका क्षण क्षण बीतने लगी। एक घडी पूर्ण हुई। पूज्य श्री स्वयमेव श्रीनमस्कार महामंत्र जप रहे थे। अन्य मुनि भी 'अरिहते पवज्जामि' का पाठ सुना रहे थे। हृदय पर प्रकुपित महाबात का हमला हुआ, और पूज्यश्री की गर्दन दो अंगुल ढल गई। शरीरनिष्णातों ने नाडी जाँचकर बताया कि दीपक बुझ गया है। भयानक आघात शिष्यों के हृदय पर वज्रपात का सा आघात हुआ। सब की आँखों से आसुओं की झडी लग गई। श्रावक वर्ग बालक की तरह चिल्ला कर रोने लगा। कोमल हृदय में भक्ति धारण किये हुए साध्विया एवं श्राविकाएँ सुबक सुबक कर रोने लगी। यह रुदन सुनना भी दर्दनाक था। उनका हृदय विदारक रुदन पाषाण हृदयों को भी रुला देता था। ____सभी जानते हैं कि सब को एक दिन जाना है, परन्तु महापुरुष के चले जाने से भावनाशील लोगों को बहुत दुःख होता है। ज्ञानियों को भी उद्धारक व्यक्ति के जाने का आघात सहना कठिन होता है। परमात्मा महावीर देव के निर्वाण से शासन के सरताज़ गणधर श्री गौतमस्वागीजी बालक की तरह नहीं रोये थे? तब भला यह शिष्यसमूह क्यो न रो पड़े। आज तो मानो गलियाँ राती हैं, राजपथ रुदन करते हैं। सूरत रो रहा है, उपाश्रय की दीवारें रोती है, पशु-प्रक्षी भी राते हैं, जैसे सब कुछ रुदनमय हो गया हो ऐसा उदास वातावरण हो गया।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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