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________________ आगमधरसूरि किया। उनके समाधान से पंडितजी सरस उत्तर देनेवाला १५६ सबका बहुत सुन्दर समाधान बहुत आनन्दित हुए। काशी में भी ऐसे कोई नहीं था । पंडितजी ने आखिर में एक प्रश्न पूछा - " महाराजजी ! इस समय आपके शरीर में ज्वर और पांडुरोग है, खाँसी और कमज़ोरी है। ऐसी अवस्था में मुझ जैसे विद्वान माने जानेवाले व्यक्ति बैठ 'भी नहीं सकते, बातचीत नहीं कर सकते जब कि आप तो इस तरह बात करते हैं जैसे शरीर में कोई दर्द या बेचैनी है ही नहीं । कठिन प्रश्नों के उत्तर आसानी से देते हैं । यह कैसे संभव होता है ?" रोग हैं। इस तरह उनमें से "पंडितजी ! व्याधि शरीर में है, आत्मा में नहीं । ज्ञान आत्मा में है, शरीर में नहीं । इस के अलावा धर्म प्रन्थ कहते हैं कि शरीर के एक एक राम में पौने देा रोग हैं। उतने कुल करीब सवा छः करोड़ रोरोग इस शरीर में छिपे हुए हैं । केवल पाँच सात रोग ही प्रकट हुए हैं । अभी करोडों रोगों ने हमला नहीं किया है यह क्या कम पुण्य की बात हैं । तब पुण्य को याद किया जाय या पापको । फिर इन रोगों ने कितनी सारी कर्म निर्जरा कराई है । इन से तो आत्मा पर का मैल स्वच्छ होता है । अस्तु, पंडितजी धर्म ध्यान करना । पंडितजी जाते हुए अपने साथ सदा के लिए सतेागुणकी स्मृति लेते गये । अशाता का उदय बन्द हुआ । पूज्यश्री की तीयत सुधरी । इधर चातुर्मास भी पूर्ण हुआ और विहार की बातें फैलने लगीं
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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