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________________ - आगमधरसूति के दंश से सुधबुध खो देते हैं। लोभ के अथाह गहरे खड्डे में लुढकते हैं। इन मार्गों से सुख के बदले अधिक दुःख प्राप्त होता है। यदि सुखी होना हो तो क्रोध का उत्ताप दूर करने के लिए समता की शीतल छाह ग्रहण करो। मान के विषमगिरि से उतर कर नम्र बना। सरलता की नागदमनी ले कर माया-नागिन का ज़हर दूर करो। लाभ की अथाह खाई को संतोष से पाट दो। इस के बाद तुम्हें अवश्य ही सुख मिलेगा। कषायों को कम करने के लिए विषय की वासना कम करने लगा। विषय और कषाय सो संसार है और विषय-कषाय का नाश ही मोक्ष है । मेक्षि. अर्थात् अनन्तज्ञानमय, अनन्तदर्शनमय, अनन्तचारित्रमय ज्योतिस्वरूप, कम मलरहित, आत्म-स्वरूप। आप सेब कम मल से रहित बनने के लिए सर्वविरति का स्वीकार कीजिए। यह न हो सके तो देशविरति ग्रहण कीजिए, आखिर सम्यक्त्व प्राप्त करें यही मंगल-भावना। - 'सर्व मंगल' कर के केवलज्ञान कल्याणक का जलूस निकाला गया। . इस के बाद निर्वाण कल्याणक विधि की गई। अंजन शलाका विधि . वीर संवत् २४६७ की माघ कृष्णा (उत्तर में फाल्गुन कृष्णा) दज का शुभ दिन था। सूर्योदय को अभी एक प्रहर शेष था। चन्द्रमा चौदह कलाओं से खिला हुआ था । वातावरण शान्त था। गुलाबी ठंड पड़ रही थी। इस अयोध्यापुरी का जनसमुदाय निद्रा देवी की गोद में सोया हुआ था। बीच बीच में पहरेदारे की आवाज सुनाई देती थी।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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