SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागमघरसरि आ गया। भगवान ने दीक्षा ली, विहार किया। सब को ऐसा प्रतीत हुआ माना अपना प्यारा पुत्र जा रहा है। अतः आँखें , भीग गई। भगवानने छद्मस्थ-अवस्था में हजार वर्ष विचरण किया था। उस . अवधि में उन्हें जो उपसर्ग हुए थे वे फलक पर दिखाये गये थे। .. केवलज्ञान कल्याणक और देशना उस रात को परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजने पट-मंडप में की सभी प्रतिमाओं को अधिवासना विधि के द्वारा अधिसित किया था। उस समय पूज्यश्री के पट्टधर आचार्य भगवंत श्री माणिक्य सागर सूरीश्वरजी महाराज तथा आचार्य भगवंत श्री विजय कुमुद सुरीश्वरजी उपस्थित थे। इन तीनों के सिवा और किसी को भीतर जाने की मनाई थी। यह गुप्त मंत्रों की मत्र-विधि थी। .. प्रातःकाल भगवान की केवलज्ञान विधि की गई। उक्त महा पटांगन में एक सुन्दर कलामय समवसरण बनाया गया था। उसमें भगवान की मूर्ति स्थापित कर, भगवान की ओर से कलिकाल कल्पतर अमृतवर्षी गीतार्थ शेखर आचार्य भगवंत श्री भागमेद्धारकजी ने देशना (उपदेश) दी। . ... देशना .. हे भव्यात्माओ ! यह संसार आधि-व्याधि-उपाधि ले सूफानों से भरा हुभा हैं। संसार में कहीं सुख नहीं है। सुख के लिए जीव कषाय करते हैं। अज्ञानी बारमा क्रोध की धाता आगमें जलते हैं। मान के विषम पर्वत पर चढ़ कर विवेक भ्रष्ट बनते हैं, माया नागिनः
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy