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________________ १४४ भागमधरसूरि तत्पश्चात् राज्याभिषेक विधि प्रारंभ हुई। उस में राजा, महामंत्री, सेनापति, नगररक्षक, और नगर सेठ-इन पाँचों की स्थापना हुई। यह दृश्य देखकर लोगों को प्राचीन राज्य की सुव्यवस्था का अनुमान होता था। इन दृश्यों को देखने के लिए अब मंढप छोटा पड़ने लगा। दीक्षा कल्याणक - भगवान ने राज्य आदि का बँटवारा उचित रीति से किया। अब नौ लोकान्तिक देव आकर भगवान् से शासन की स्थापना करने की प्रार्थना करते हैं। भगवान उस रोज से वार्षिक (बरसी) दान देते हैं। इस अयोध्या नगरी से भगवान का वर्षीदान का जलूस निकलता है। एक महापुण्यवान महानुभाव भगवान को ले कर श्याम गजराज पर बैठे हैं। वे भाग्यशाली सज्जन भगवान की ओर से सोने, चांदी, तांबे के सिक्कों का खुले हाथों दान करते हैं। भगवान स्वयं दान दे रहे है। ऐसा दृश्य दिखाई देता था। यह जलूस अयोध्या नगरी से रवाना हो कर पादलिप्तपुर के राजमार्गों पर घूम कर पुनः अयोध्या नगरी को लौट आया। इस जलूस में एक महाकाय गजराज पर आगमरत्न-मंजूषा भी थी। इस जलूस का ठाठ अवर्णनीय था। अयोध्या नगरी के उद्यान में भाकर जलूस पूर्ण हुआ। भगवान नीचे उतरे। अशोक वृक्ष के नीचे आकर अपने शरीर पर से आभूषण उतारने लगे। अन्त में पंचमुष्टि लोच का आरंभ किया। इन्द्र के अनुरोध से आखिरी एक मुष्टि बाकी रहने दी। .. भगवान की ओर से पूज्य आगमाद्धारकनीने 'करेमि सामाइयं सावज्ज जोग पच्चक्खामि' का पाठ कहा। इस समय भगवान को मनः पर्यव ज्ञान हुआ। वैराग्य का यह दृश्य देख कर सब को रोना
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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