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________________ आगमधरमूरि १४१ च्यवन कल्याणक च्यवनादि कल्याणक-समारोह के लिए नाभिराजा का चीनांशुमंडित राजप्रासाद बनाया गया था। उसकी रचना सुन्दर राजमहल को भी मात करती थी । आज च्यवन कल्याणक-विधि थी, अतः उक्त मानवसर्जित पट-राजमहल के भीतर हजारों प्रेक्षक उपस्थित हुए थे। - चिनांशु-राजमहल में रेशमी गलीचों का बमा शयनागार था। सभी प्रेक्षकों की नजर उसकी ओर थी। उसमें हलका सा बँधेरा था । छोटे छोटे रत्नदीप हलका प्रकाश बिखराते थे। उस प्रकाश में नीलम के पलंग पर सोई हुई राजरानी दिखाई देती थी। उसके नेत्र हलकी सी नींद के भार से मुंदे हुए कमल-से दीखते थे। उनके मुख पर मधुर निद्रा-दर्शक हलकी-सी मुसकान दिखाई देती थी। रत्नदीप की किरणे मुख पर पड़ने से वह मुसकान स्पष्ट दिखती थी। पटांगन में नौरव शान्ति थी। इतने में आकाश से एक प्रकाश पुंज उतर भाया और महारानी भरुदेवा की कुक्षि में स्थिर हुआ। ____ इस के साथ आकाश में से ऐरावत हाथी उतरा। संगीतकारों ने सौम्य स्वर में 'पहेले गजवर दीठे।' यह गीत शुरू किया। वीणाने अपना पंचम सुर मिलाया। तत्पश्चात् मत्त वृषभराज पधारे, केसरी सिंह और लक्ष्मीजी आई। क्रमशः माता को चौदह स्वप्न आये। ... जब चौदह स्वप्न पूरे हुए तब श्रोता-दर्शकों को पता चला कि धूम्रावरण के शयनागार में सोई हुई नारी तीर्थ कर की अभिमन्त्रित माता हैं। - माता ने अपने पतिदेव के पास स्वप्नों का वर्णन किया। प्रतिदेवने स्वप्न-फल कहा। यह आदीश्वर भगवान का युग था। उस समय
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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