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________________ १४२ मागमधरसरि ज्योतिषी नहीं थे। ज्योतिषी हो तो उन्हें आमंत्रण दिया जाता है। ज्योतिषी फलादेश कहते हैं। वे फलादेश में बताते हैं कि, 'परम तारक तीर्थ कर अथवा चक्रवर्ती राजाका जन्म होगा।' ... उसके बाद च्यवन कल्याणक का जलूस निकला । जन्म कल्याणक __ अब जन्म कल्याणक मनाने का दिन आया । राजभवन लोगों की भीड से भर गया । सब लोग स्थिर बन कर जन्म विधि देखने को आतुर हो रहे थे तभी पूज्य आगमदारकश्रीने मंत्रोच्चार किया और क्रियाकारकाने सुवर्ण-कुम्भ में से भगवान को बाहर लिया। उस समय राजमहल जय ध्वनि के साथ एकाकार हो गया । उसी वक्त सबसे पहले छप्पन दिक् कुमारी देविया जन्मोत्सव का लाभ लेने आ पहुँची। ये छप्पन कुमारिया मानवलोक के नररत्नों की पुत्रिया थी। यौवन के द्वार पर खड़ी थीं। रूप में रति और कंठ में किन्नरी के समान ये कमलनयना कन्यकाएँ जब झांझर की झंकार करती हुई प्रमु का जन्मोत्सव करने आई तब पटांगन का जनसमूह सोचता ही रह गया कि ये छप्पन कुमारिकाएँ देवलोक से आई हैं या मानवलाक से ? छप्पन कुमारिकाओने कदलि के तीन घर बनाये । सूतिकर्म, शुचिकर्म भादि करके समवेत स्वर में गीत गाये । गरबा, नृत्य आदि किये । प्रेक्षक वर्ग सब कुछ एकाग्रचित हो कर देख रहा था । इतने में छप्पन दिक् कुमारियाँ गायब हो गई। मानव-इन्द्र का सिंहासन डोल उठा । अवधिज्ञान का उपयोग कर प्रभु जन्म के समाचार जाने । हरिणगमेषी को बुलाकर उससे प्रभु जन्मोत्सव में पधारने की उद्घोषणा करने को कहा।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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