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१४.
आगमधरसरि
अयोध्यानगरी की रचना इस धारणा से कि इस महोत्सव में सम्मिलित होने बहुत से पुण्यशाली आएँगे ही, पटमय अयोध्या नगरी की रचना की गई थी। इस महामदिर के मूलनायक भगवान आदीश्वर परमात्मा थे अतः इस मानवनिर्मित पटमय नगरीका नाम 'अयोध्या' रखा गया था ।
इस नगरी की रचना अयोध्या की याद दिलाती थी। हजारों की संख्या में पंक्तिबद्ध छोटी छौलदारिया थी। बीचमें बड़ी छौलदारिया श्री। कुछ विशाल तंबू भी ताने गये थे। उत्सव मनाने के लिए अतिविशाल पटांगन बनाया गया था।
महा पटमंडप चीनाशुकवस्त्र से सुशोमित था उसे ध्वजा, पताका, तोरण, आदि सुशोभनों से राजमहल सा बनाया गया था । उसमें मेर पर्वत, समवसरण आदि की हूबहू रचना की गई थी। वहा श्रीपाल महाराजा और मयणा सुन्दरी महारानी के जीवन प्रसंग दर्शानेवाले चित्र भी देखनेको मिलते थे।
कुम्भ स्थापन माघ सुदी दशमी रविवार को जलयात्रा जलूस था । माघ सुदी सोमवती एकादशी के शुभ दिनको कुम्भ स्थापना द्वारा उत्सव का मंगलाचरण हुआ। साथ साथ अखंड दीप स्थापन, जवारारोपण, विजय स्तम्भ स्थापन विधि की गई । दोपहर को पूजाएँ और रातको भावनाएँ होने लगीं। दूर दूर के प्रतिष्ठित संगीतकार भक्तिरस जमाने आ पहुंचे थे।
अन्य दिनों में दशदिक्पाल पूजन, नवप्रह पूजन, नयावर्त पूजन, अष्टमंगल पूजन, अधिष्ठायक पूजन आदि विधिविधान किये गये ।