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________________ आगमधरसरि १३७ विचार एक स्वतन्त्र एवं अपूर्व विचार था। यह एक नूतन और दिव्य प्रेरणा थी। प्रथम संगमरमर के शशिधवल स्वच्छ सुन्दर पाषाण-प्रतरों पर आगम खुदवाना उपयुक्त प्रतीत हुआ। पवित्र भूमि _____ जहाँ आत्मसिद्धि की साधना आसानी से होती है ऐसे सिद्धगिरि की उपत्यका में स्थित पादलिप्तपुर में पूज्यपाद आगमोद्धारकश्रीजी चातुर्मास रहे हुए थे। हर रोज गिरिराज की स्पर्श ना करने तलहटी जाते थे। एक बार तलहटी की स्पर्श ना कर लौटते हुए उनकी निगाह बायीं ओर की भूमि पर गई । शुभ संकल्प की सिद्धि का रमणीय दृश्य मन में चमक उठा । 'इस भूमि पर आगम मंदिर बने तो अच्छा ।' __यह अनादि सिद्ध सिद्धान्त है कि पुण्यवान् जो विचार करते हैं वह सिद्ध होता है । पूज्यपादश्रीने उचित अवसर पा कर यह बात भाग्यशाली श्रद्धासंपन्न श्रावकों के सम्मुख प्रकट की। शनैः शनैः इस बातका सक्रिय अमोघ प्रचार हुआ । पुण्यवान् आगमोद्धारकश्री की भावना का भाग्यशालियों ने भक्तिभावपूर्वक आदर किया और उसे कार्यान्वित किया । रेखाचित्र निर्णय - सुशिल्पियों को आमन्त्रण मेजे गए । सब को रेखाचित्र विषयक मार्गदर्शन दिया गया । बहुत से शिल्पकार रेखाचित्र के काम में जुट गए । दूसरे महीने से बहुत से रेखाचित्र प्रस्तुत हुए । पूज्य आगमद्वारकत्रीने उन रेखाचित्रों का सूक्ष्म-निरीक्षण किया, और उनकी. दृष्टि एक रेखाचित्र पर स्थिर हो गई ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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