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________________ १३६ अगमधरसूरि यह बात अभी तो उनकी मनेाभूमि में ही कल्लोल कर रही थी। बाहर भाये बिना अन्य किसी को कैसे ज्ञात हो ? पाषाण प्रतर का विचार सम्पूर्ण आगमों को ताम्रपत्र पर लिखने का विचार जैसे आने बढ़ता गया वैसे आगमोद्धारकजी के मन में नये विचारोंका स्फुरण हुआ। महाराजा खारवेल और सम्राटू सम्प्रति के शिलालेख, कई राजाओं की आज्ञाएँ शिलाओं पर खुदी हुई है, दो हजार वर्ष बीतने पर भी ये विलाएँ सुन्दर स्थिति में प्राप्त होती है अत: शिला-प्रतर पर आगम खुदवाये जाएँ तो कैसा । अद्वितीय विचार पूज्यपाद आगमोद्धारकश्रोका यह विचार इस अवसर्पिणी काल में सबसे पहला मालूत होता है। नीलमणि, गोमेदक, प्रवाल, स्फटिक आदि रत्नों की प्रतिमाएँ बनी थी। अर्जुन, जांबुनद, पीताभ सुवर्ण की मूर्तियाँ बनी, रजत और पंच धातुओं की मूर्तिया बनाई गई, अनेक प्रकारके पाषाण-खंडों में से प्रतिमाएँ बनाई गई थी। कसोटी, काष्ठ, चंदन, हाथीदात आदि की मूर्तिया बनी थी । विविध प्रकार की स्याही से, सोने चांदी की रोशनाई से भी आगम प्रन्थ लिखे गये थे फिर भी पाषाण-आगम मदिर अथवा ताम्रपत्र आगम मदिर का उल्लेख शास्त्र के पृष्ठों में अथवा इतिहास के वर्णने में लिखा हुआ नहीं मिलता। - आगम दीघजीवी हो और उनके द्वारा भविष्य के भव्य जीवों को जिनवाणी की प्राप्ति हो सके इस हेतु से आगम मंदिर बनवाने का
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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