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________________ आग्रमधरस्ति चार द्वार, अतुर्मुख भगवन्त, विशाल गर्भगृह, पैंतालिस देव कुलिकाएँ, पाच मेक आकृतिया, पैंतालिस चतुर्मुख जिनबिम्ब, दीवारों पर पैंतालीस आगम, गगनचुम्बी मूलशिखर; पैंतालिस का सुन्दर सुमेल था। जब पुण्यवान् शिल्पकार भानुश करभाई ने रेखाचित्रका आरम्भ किया था तब उनकी उंगलियों के पोरों पर दिव्य शक्तिने वास किया हो ऐसा प्रतीत होता था । यह दिव्य शक्ति अपनी इच्छानुसार उंगलियोंको चलनेकी प्रेरणा देती थी, और सफेद कागज पर रेखाएँ अंकित होती. जाती थीं। इस सुशिल्पी को शिल्प शास्त्रका ज्ञान तो था ही परन्तु शिल्पशास्त्र में अभी तक इस रेखाचित्रका समावेश नहीं हुआ मा । फिर भी यह रेखाचित्र झास्त्रविशुद्ध था। पूज्य आगमाद्धारकजीने रेखाचित्र देखकर हर्ष प्रकट किया । कार्यारंभ - सलहटी के पास की भूमि राज्य से मांगी गई । राजाने बोडी कीमत में और देर किये बिना भूमि दे दी। ज्योतिषियों के बुलाकर ज्योतिष दिखाया गया । क्रमशः भूमिशोधन, भूमिखनन, शिलास्थापन, द्वार-शाख-स्थापन आदि क्रियाएँ प्रशस्त मुहुतों में शीघ्रता से होने लगी। मकराना से संगमरमर आया, 'ध्रांगध्रा की खान और तिवरीका पत्थर आया। पालीताना काईचत् स्याम पत्थर भी काम में लाया मला। कुम्हार की गली से ईंटें लाई गई, सोनगढ़ी चूना भावा। शत्रुजयी मी ही रेती भाई । मरुधर और गुर्जर प्रदेश के शिल्पी भागे । सैंकडों कारीगर और हमारी सेवक काम करने लगे। लाखों रुपयों का व्यय शुरू हुआ।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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