SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं बाल्यावस्था में भी हस्ती के हृदय की करुणाशीलता का यह अनुपम उदाहरण है। इस घटना के समय बालक हस्ती लगभग सात वर्ष के थे। इस अवस्था में करुणा का यह भाव तथा अपने साथियों पर उनका ऐसा प्रभाव उनके विलक्षण व्यक्तित्व को प्रकट करता है । इस घटना से बालक हस्ती में कुशल नेतृत्व के गुण का भी बोध होता है। ___ बालक हस्ती बचपन में पारस्परिक कलह को दूर करने में भी प्रवीण रहे। इस सम्बंध में एक घटना उपलब्ध हुई है। गांव के बहुत से बालक नीम के पेड़ की छांव में कबड्डी का खेल खेल रहे थे। यह खेल भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का एक नमूना है। इसमें प्राणायाम से लेकर शरीर के सभी अवयवों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। कबड्डी खेलते-खेलते बच्चों में विवाद हो गया। हुआ यह कि एक दल का खिलाड़ी दूसरे दल के पाले में कबड्डी-कबड्डी बोलता हुआ गया तब लौटते समय मध्य रेखा पर आने से पूर्व उसका श्वास टूट गया। इसका लाभ उठाने के लिए उस दल के खिलाड़ियों ने उसे छू लिया। किन्तु यह खिलाड़ी पुनः कबड्डी-कबड्डी बोलता हुआ अपने पाले में आ गया। इस खिलाड़ी का यह दावा था कि इसका श्वास नहीं टूटा, जबकि दूसरे दल के खिलाड़ी यह कहते हुए अड़ गए कि इसका श्वास टूट गया था। यह विवाद चल ही रहा था, तभी वहां उपस्थित बालक हस्तिमल्ल पास में पड़ी निम्बोलियाँ उठाकर बोला-“ये निम्बोलियां खाने पर कैसी लगती हैं बताओ।” एक साथी ने कहा-'निम्बोली कोई खायी जाती है, इससे तो मुंह कड़वा हो जाता है।' हस्ती ने अपनी प्रतिभा से सहज न्याय करते हुए कहा____ “जैसे निम्बोली खाने से जीभ कड़वी हो जाती है, वैसे ही झूठ बोलने पर मुँह कड़वा ही होगा और पाप भी लगेगा।” हस्ती की यह बात सुनकर सभी गम्भीर हो गए। झूठ बोलने वाला वह खिलाड़ी बालक आगे आया और बोला-'हस्ती मैंने झूठ बोला, मेरा श्वास टूट गया था, किन्तु मैं पुनः कबड्डी-कबड्डी बोलता हुआ अपने पाले में आ गया।' इस प्रकार हस्ती भैया के सच्चे एवं सहज-न्याय की प्रतिभा से सभी बालक अचम्भित थे। बाल्यावस्था में पीपाड़ से फलौदी (मेड़ता रोड़) के मेले में गए। वहां शान्तिनाथ के मन्दिर में ठहरे । रेल यात्रा भी एक बार की। सम्भवत: पीपाड़ रोड से मेड़तारोड़ की यात्रा ट्रेन से की। वे एक विवाह समारोह में बैलगाड़ी से रणसीगाँव गए। ननिहाल में जाते रहते थे। कभी फूफाजी श्री चुन्नीलालजी मुथा एवं भुआजी जब अमरावती से आते तो वे वहाँ भी जाया करते थे। बाल्यावस्था में ही हस्ती का व्यवहार एक समझदार एवं परिपक्व विचारों के व्यक्ति का सा था। वह जितना | करुणा-परायण था उतना ही न्यायप्रिय भी। दूसरों का दुःख उससे सहा नहीं जाता था। जब हस्तिमल्ल ७ से ८ वर्ष की उम्र के थे तब अपने एक बाल-सखा तेजमल बोहरा के साथ बल परीक्षा | करने लगे। बल परीक्षा में कंधे पर हाथ रखकर कंधा झुकाना था। बालकों में यह जांच हुआ करती थी कि घी किसने अधिक खाया? बालक हस्ती एवं तेजमल में यही जांच हो रही थी। इस खेल में जब हस्तिमल्ल ने तेजमल के कंधे पर हाथ रखकर उसे झुकाया तो वह अचानक गिर गया और हस्तीमल की जीत में सब साथी उसकी जयकार करने लगे और उसे उन्होंने अपनी भुजाओं पर उठा लिया। किन्तु इन साथियों के कंधे पर बैठा हस्ती का मन जमीन पर गिरे अपने साथी तेजमल की ओर था। उसे जीतने की प्रसन्नता नहीं थी, बल्कि मित्र के गिरने का खेद हुआ। उन्होंने सोचा यह कैसा खेल, जिसमें खिन्नता हो। इससे बालक हस्तिमल्ल की खेल से अरुचि हो गई, | और इस प्रकार के खेल में उनका कोई मिठास नहीं रहा। चरितनायक ने स्वयं अपने संस्मरणों का दैनन्दिनी में उल्लेख किया है कि तेजमल भाई के गिरने से उन्हें "खेल में मिठास नहीं रहा।" बल-प्रयोग एवं सार्थी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy