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प्रथम खण्ड: जीवनी खण्ड
• पौशाल की शिक्षा
बालक हस्ती अब लगभग पाँच वर्ष का हो गया था। उसे पौशाल (चटशाला) में पढ़ने भेजा गया। गाँवों में पढ़ने के लिए जो शालाएं चलती थीं, उन्हें पौशाल कहा जाता था। पौशालों में लिपि, लेखन एवं गणित का ज्ञान | कराया जाता था। हस्तिमल्ल ने पौशाल में शीघ्र ही वर्णमाला, बारहखड़ी के अक्षर लिखना, पढ़ना एवं बोलना सीख लिया। गिनती सीखने के बाद पहाड़े, जोड़-बाकी के हिसाब भी सीखे। हस्तिमल्ल की बुद्धि कुशाग्र थी, स्मरणशक्ति तेज थी एवं पौशाल जाने में नियमितता थी। वह शीघ्र ही अपने गुरुजनों का प्रिय छात्र बन गया। पौशाल में उसने पुस्तक पढ़ना, गुणा-भाग करना एवं महाजनी के हिसाब करना भी सीख लिया। पौशालों में उस समय सद्आचरण से सम्बद्ध दोहे आदि भी कंठस्थ कराये जाते थे, जिन्हें याद करने में हस्ती अग्रणी रहा।
पौशाल की महाजनी एवं व्यावहारिक ज्ञान के साथ दादी नौज्याँ बाई एवं माता रूपा ने बालक को धार्मिक Im चारित्रिक शिक्षण भी दिया। वे इस्ती को चारित्रिक अभ्यदय की बातें बताया करती थीं। धार्मिक ज्ञान सीखने के लिए बालक हस्ती हलवाई बाजार के उपाश्रय में श्री धूलचन्द जी के पास जाता था। उसने धूलचन्द जी से लोगस्स तक सामायिक का पाठ सीखा। बाल्यावस्था में हस्ती को व्रत-प्रत्याख्यान, सामायिक प्रतिक्रमण और नमस्कार मंत्र के जाप की महत्ता का बोध होने लगा। • बाल-लीलाएँ
हस्तिमल्ल का बचपन प्रायः नाना एवं दादी के घर में ही बीता। उन्हें जिस प्रकार दादी नौज्यांबाई एवं माता रूपादेवी का वात्सल्य प्राप्त था उसी प्रकार नाना गिरधारी लाल जी मुणोत का भी पूरा वात्सल्य प्राप्त था। एक बार शीत ऋतु में जब बालक हस्ती अपने ननिहाल में था तब उसके खेसले (चद्दर) का पल्ला आग में गिर गया और वह आग में धू-धू कर जलने लगा तभी नाना गिरधारीलाल जी मुणोत दौड़ कर आये एवं बालक हस्ती को बचाया।
बालक हस्ती अन्य बच्चों के समान खेलकूद में भी भाग लेते थे। वे बाड़े में झूला झूलते थे एवं प्रात:काल मक्खन और ठण्डी रोटी का नाश्ता करते थे। कुत्ते के पिल्लों को खिलाने में उन्हें बहुत आनंद आता था। पिल्ले जैसे प्राणियों से उन्हें बड़ा प्यार था। वे पिल्लों को दूध-रोटी या अन्य खाद्य वस्तुएं बड़े प्रेम से खिलाते थे।
एक बार पड़ौस के एक सूने घर में कुत्ते के पिल्लों के चीखने-कराहने की ध्वनि सुनाई दी। हस्ती से यह क्रन्दन सहा नहीं गया। वे दौड़ कर शब्दभेदी बाण की तरह घटना स्थल पर पहुंचे तो देखा कि उनके बाल-साथी पिल्लों को सता रहे हैं। कोई उन पर पत्थर मार रहा है तो कोई उठा कर उन्हें जोर से नीचे पटक रहा है। कोई उनकी पूंछ पकड़ कर खींच रहा है तो कोई उनके लात मार रहा है। पिल्ले इन हरकतों को सहन नहीं कर पाने के कारण रुदन-क्रन्दन कर रहे थे। बाल साथी इन पिल्लों को तंग कर आनन्दित हो रहे थे। बालक हस्ती यह देखकर करुणित हुआ और दौड़ कर एक पिल्ले को उठाया, उसे छाती से लगाया एवं अपने साथियों से बोला-"जैसे हमारे में जीन है, उसी प्रकार इन पिल्लों में भी जीव है, हमें जिस प्रकार कोई सताये या मारे-पीटे तो हमें दुःख या पीड़ा होती है उसी | प्रकार इन पिल्लों को सताये जाने पर इन्हें भी पीड़ा का अनुभव होता. है। इन पिल्लों को सताना छोड़ दो। देखो यह पिल्ला जो मेरी गोद में है, कितना खुश, शान्त एवं निर्भय हो गया है। इन पिल्लों को भी अब निर्भय होने दो।" बालक हस्ती के द्वारा इस प्रकार के वचन कहे जाने पर सबने पिल्लों को सताना छोड़ दिया। इसके पश्चात् बालक हस्ती के कहने पर सब साथी उन पिल्लों को दूध-रोटी खिलाने में जुट गए।