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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं सामायिक से हृदय की विषमता हरो ॥सामा. ॥१॥ जगत-जंजाल में जिन्दगी जा रही विकट अंतिम घड़ी नित निकट आ रही भटक अज्ञान में बाल ज्यों मत मरो ॥सामा. ॥२॥ नेत्र हैं धन्य जो संत दर्शन करे जीभ है धन्य वाणी से अमृत झरे कान से शास्त्र सुन, ज्ञान का घट भरो ॥सामा. ॥ 'ज्ञान आत्म का गुण है' उन्होंने कहा श्रद्धा का रंग बिन ज्ञान के कब रहा करके स्वाध्याय श्रद्धा बहुत दृढ करो ॥सामा. ॥४॥ आचरण के बिना ज्ञान सूना है ज्यों आचरण भी अधूरा है बिन ज्ञान त्यों शुद्ध कर आचरण ज्ञान, भव जल तरो ॥सामा. ॥५॥ कैसा अनमोल मोती' ये नर तन मिला अब तो आत्मा को 'गौतम' परम पद दिला त्याग दो दुर्व्यसन कर्म-रिपु से डरो ॥सामा. ॥६॥
(२६) गुरु हस्ती ने अलख जगाया
(तर्ज - बड़ी देर भई नन्दलाला....) गुरु हस्ती ने समझाया, स्वाध्याय करो फरमाया गांव-गांव घर-घर सामायिक, ऐसा अलख जगाया रे॥टेर ॥ सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र तप यही मोक्ष का मार्ग काही है स्वाध्याय ज्ञान-दर्शन तो, सामायिक तप चरित महा, सामा. गहरा मन्थन कर आगम का, सार तत्त्व बतलाया रे ॥१॥ चाहें अगर समाज राष्ट्र गुण गरिमा से सम्पन्न बने, गरिमा चाहे यदि संकट के बादल, छाएं नहीं चहुं ओर घने, छाएँ सबसे सरल मार्ग सामायिक, अरु स्वाध्याय सुझाया रे ॥२॥ कभी न भूलेंगे 'गौतम' इन गुरुवर के उपकारों को, गुरु अन्तर्मन में झांक हटावें मन में भरे विकारों को, मन में जिनशासन मोती चमकाने 'हीरा' पाट बिठाया रे ॥३॥